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१९३ कहइ जणद्दणु पंडव-सेण्णहो जं उव्वरिउ रणंगणे दुजउ कउरव तट्ठ तणट्ठउ-हत्थ भग्ग महा-विसाण णं वारण णं उप्पाडिय-दाढ भुअंगम सूडिय-साह-णिवह णं पायव
चउरासीइमो संधि तिहिं भयवत्त-जयद्दह-कण्णहं तं अजरामरु होउ धणंजउ णं कुलगिरि कुलिसाहय-मत्थ णं उक्खणिय-णक्ख पंचाणण छिण्ण-पक्ख णं पवर विहंगम णं दिणमणि वहु-घण-भग्गायव
घत्ता
भजंतए कउरव-साहणे धणु लेवि सयं भुव-दंडेण
आयामिय-आओहणेण । आयासणीउ(?) दुजोहणेण॥
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
कण्णवहम्मि(?) चउरासीइमो सग्गो॥
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