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________________ २१४ रिट्ठणे मिचरिउ . पलंव-वाहु-दंडया गय व्व उद्ध-सुंडया अ-थोव-कोव-दित्तया सिहि व्व सप्पि-सित्तिया घण व्व घोर-घोसया फणि व्व वद्ध-रोसया घत्ता कियवम्मु किवेण पच्छाउहु ओसारियउ। रहु अग्गए देवि अप्पुणु पुणु हक्कारियउ॥ सिणि-णंदणु छहिं तोमरेहिं विद्धु अट्ठहिं आढत्तु अजायसत्तु तो राएं रोस-वसंगएण ओसारिय विण्णि-वि भग्गसोह सण्णहेवि पधाइय पंडवाहं सयसत्तु सुवण्ण-महारहाहं दुजोहणु मत्त-गएण पत्तु सो भणइ म धावहु तुरिउ धाम पुणु सत्तहिं पुणु अट्ठहिं णिसिद्ध हय हयवर ताडिउ आयवत्तु कियवम्मु दसहिं किउ सर-सएण ते सल्ल-पयाणुव वद्ध-कोह णिविडावयत्त-किय-मंडवाहं गिव्वाण-महागिरि-सच्छहाहं सिय-चामर-वासणु धवल-छत्तु अवरइ-मि वलइं पावंति जाम ८ घत्ता णिय पहुण गणेवि धाइय पाइक्क जहिं हय-मुइंग-दडि-काहलई। सव्वइं पंडव-वलइं॥ जायवं महारणाई एक्कमेक्क-मारणा पत्त-रत्त-पाउसाइं घोर-घाय-घोलिराई हड्ड-रुंड-दाविराई सोणिओह-रप्पिराई चप्पिया मया मएहिं भूमि-वेर-कारणाई कुंभि-कुंभ-दारणाई कड्डियंत-फेप्फसाई छिण्ण-टंक-लोलिराइं +++++++++++ अंत-माल-गुप्पिराई भग्गया गया गएहिं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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