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सत्तासीइमो संधि
सुसामिय-विहीणं खरायव-वितत्तं तिसा-सुसिय-गत्तं गयं कहि-मि सेण्णं
मुहंदुरुह-दीणं वसा-रुहिर-मत्तं छुहा-छमछमंतं मुहं तहि-मि अण्णं
१२
घत्ता
किव-गुरुसुय-भोय तिण्णि-वि णासेवि कहि-मि गय। णं मत्त-गइंद केसरि-णहर-पहर-पहय॥
[१३] तहिं अवसरे सउणिहे णंदणेण सुर-णयर-समप्पह-संदणेण सत्तरिहिं सरेहिं सहएउ विद्ध तेण-वि तेणवइहिं पडिणिसिद्ध अवरेक्के पाडिउ छत्त-दंडु अवरेक्के धणुवरु किउ दु-खंडु किर कुरुव-णराहिव रणु ण भगु +++++++++++++ णिय-सुय-विओय-विहलंघलेण सहएउ विद्ध तिहिं सउवलेण धट्ठज्जुणु पंचहिं छहिं सिहंडि णण(?) थरहरंत लाइय तिकंडि पवणंगए दह वारह परिंदे सिणि-तणए सट्टि सत्तरि उविंदे
घत्ता सहएवें छिण्णु सउणिहे समरे विअक्खणहो। उद्दालिउ णाई दइवें धणु णिल्लक्खणहो ।
। [१४] तो सउणि-मामेण संगाम-कामेण णिय-सामि-सत्तेण सेयायवत्तेण सिय-चामरोहेण रह-मत्थयत्थेण फर-रयण-हत्थेण कड्डिय-किवाणेण आभिट्टमाणेण
+++++++++++ छिण्णाई सयलाई रिउ-वाण-जालाई तो भीम-पमुहेहिं उत्थरेवि समुहेहिं
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