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________________ ३ रिठ्ठणे मिचरिउ तो कुरुव-णरिंदें तहो सहाय पडिवारा पेसिय सत्त भाय दिढरहु सत्तुंजउ सत्तुहणु दुद्धरु जउ विजउ विगण्णु महणु धाइय दुद्धरिस विओयरासु णं मत्त महागह ससहरासु आढत्तु महाहउ परम-घोरु णं धरिउ करिहिं केसरि-किसोरु सो मारुइ कम्मई करइं वे-वि कण्णहो आभिट्टइ हणइ ते-वि ते-वि ८ कण्णहो विणिवारइ वाण-जालु ताह-मि ढुक्कइ णं पलय-कालु मणि-कुंडलु कण्णहो तणउ छिण्णु ताह-मि एक्केक्कउ सरेहिं भिण्णु । घत्ता जे कुरुव-णरिंदें पट्टविय तेण-वि भीमहो आलणउं । जेमंतहो कण्णहो भोयणए णं किय सत्त-विसालणउं ।। तो सोणिय-पव्वालिएण कड्डेवि स-सरु सरासणउं कण्णे कोव-करालिएण। छिण्णु कवउ भीमहो तणउं ।। पंडवेण-वि तासु ण दिण्णु खणु जंलेइ सई करे तं हणइ धणु सत्तमउ खुरुप्पें खंडियउ अट्ठमउं विहंजेवि छंडिउ णवमउं खल-हियउ व वंकुडउ दसमउं कु-कलत्तु व थडुडउ एयारहमउं सरु ताडियउ ससि-खंडु व गयणहो पाडियउ वारहमउं कोडि-वलग्गणउ किविणहरु व घल्लिय-मग्गणउ तेरहमउं वइरि-णिसंधणउ दुजण-दुव्वयणु व विंधणउ चउदहमउं वासव-चाव-समु पण्णारहमउं संगाम-खमु सोलहमउं रवि-तणयहो तणउं गुण-विद्धि-रहिउ णं कित्तणउं घत्ता धणु उद्दलिय-लयंताहं भीमसेण-चंपाहिवहिं। सम-सीसी वट्टइ विहि-मि रणे णं णं दइव-पयावहिं॥ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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