________________
रिठ्ठणेमिचरिउ
२३६
घत्ता खणे पवणु भयंकरु खणे वइसाणरु खणे पडिसढु समुच्छलइ। तुटुंतु वलंतउ वाहिरि जंतउ तिहि-मि णएहिं तिहुयणु चलइ॥९
भड भिडिय दुइ-वि पिहितणय-मउडि सुर-कुलिस-कढिण-कर-लइय-लउडि जिह जमवइ वियलिय कुडिल-भडहं जिह सुरवर-करिवर वलिय समुह जिह मयवइ पसरिय-णहर-पहर किय-णिसिय-भिउडि परिफुरिय-अहर णिय-णयण-जलण-किय-भुअण-पलय मुह-कुहर-पवण-हय-जलय-वलय ४ जम-करण-करण-अणुकरण-कुसल रण-कमल-मिलिय-सुर-णयण-भसल दह-दह-णह-पह-जिय-तरुण-तरणि कर-चलण-वलण-विलविय-धरणि अणवरय-भमिर जस-भरिय-भुवण . गय-पहर-मरण-भय-पसर-मुवण रण-रस-वस समरे ससमिय दुइ-वि तणु-तडि-णिण्हवण-सयण-सम-रुइ-वि८
[जयदेवेन अचलधृतिरिति पिंगले
घत्ता
९
ते भीम-सुजोहण वर-गय-पहरण अहिलसंति महि-विजय-सिरि। दीसंति सुरिंदें णरवर-विंदें णं स-संझ उययत्थ-गिरि ॥
[८] हरि-करि-आयारेहिं पइसरंति वारहहि-मि सुत्तिहिं संचरंति सर-वारण-कोंत-णिवारणेहिं अवरेहि-मि वरि-वियारणेहिं वत्तीसहिं करणेहिं वावरंति चूडामणि-पमुहेहिं परिभमंति संकोय-विकोयावत्तणेहिं गय-पडियागय-गोमुत्तणेहिं अहि-दावण-परिधावण-वइहिं उवणत्थोणत्थ-महागइहिं अब्भंतर-दाहिण-मंडलेहिं सव्वावसव्व-हुलि-गोंदलेहिं(?) चउमुह-उद्धर-पडिउद्धरेहिं गय-घाएहिं आएहिं णिद्धरेहिं अट्ठहि-मि णिवंधेहिं वाहु-दंड वंधंति परोप्परु रणे पचंड
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org