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________________ रिठ्ठणे मिचरिउ घत्ता स-विलक्खु स-सज्झसु सूर-सुउ पडिवउ कह-वि कह-वि वलिउ । सोमाइउ मत्त-महागएण लीलए कमलु जेवं कलिउ॥ [१५] पुणु वि भिडिय परिकुविय-मण कण्ण-विओयर वे-वि जण। सर जालालुंखिय-गयण तोसिय-हरि-हर-चउवयण ॥ विण्णि-वि सधणु रुहिर-जलोल्लिय जमल-पलास णाई पप्फुल्लिय णित्तम-तवण-तणुत्तम-तोएं सर तेवीस मुक्त राहेएं तो कुरु-कुल-कलि-काल-विलासें रक्खस-वंस-विणास-पयासे विसु जउहरु पासा केस-गहु . दोमइ-हरणु वसणु वणु गोग्गहु गुण-विच्छाउ सरेप्पिणु वालहो चाउ चउत्थउ चंपा-पालहो पाडिउ हियउ णाई कुरु-णाहहो दाढा-खंडु व आइ-वराहहो धणु पंचमउं छिण्णु रहु पाडिउ णं कुरुवाहं मडप्फरु साडिउ अवर-महारहे सिहर-णिसण्णे अच्चग्गलउ कम्मु किउ कण्णे घत्ता रहे अण्णहिं अण्णहिं संकमइ मासे मासे दस-सय-किरणु। आइय पुणु घडियभंतरेण पंच वार किउ संकमणु । [१६] तहिं अवसरे दुजोहणेण पर-वल-जल-अड्डोहणेण। रवि-तणयहो उद्धरण-मण पेसिय भायर पंच जण ।। दुम्मरिसण-दुजय-चित्तसेण संकुद्धद्धाइय रहवरत्थ गुरु-गंधवहु य-धयवडोह तो तेहिं महाहवणुज्जएहिं आरोडिउ भीमु मइंद-कीलु दुम्मुह-दूसह वहु-अमरिसेण वर सर-सरासण-हेइ-हत्थ आइद्धावरण-णिवद्ध-कोह पंचहि-मि कुमारेहिं दुज्जएहिं रह-महिहर-धय-लंगूल-लीलु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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