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रिट्ठणे मिचरिउ
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[११] तहिं अवसरे वियसिय-मुह-पोमहं धाइउ सउणि-मामु सुय-सोमहं छाइउ एक्कमेक्कु णाराएहिं खंडिय सउवलेण खुर-घाएहिं छिण्णु सरासणु रहु विद्धंसिउ कउरव-लोएं णामु पसंसिउ ताम धणंजय-सुएण पयंडे भीम-भुवंग-भोग-भुय-दंडे ४ विज्जु-सम-प्पहु णिय-णामंकिउ दंतवालु कलहोयासंकिउ अहिणव-वग्घ-चम्म-परिवारउ कड्डिउ मंडलग्गु सिय-धारउ चउवीसेहिं वर-मंडल-मग्गेहिं गुरु -सिक्खिहिं अवरेहि-मि अणग्गेहिं छिण्ण सिलीमुह तेण विखंडिउ अद्धु लग्गु करे णाई तरंडउ
घत्ता असि-खंड-सणाहु गउ उप्पएवि पंच पयई। सारहि स-तुरंगु धणु गुणु छत्तु चिंधु हयई।
[१२] पुणु पल्लट्ट पडीवउ तेत्तहे रहु सुयवित्तिहे केरउ जेत्तहे सउणि वि गउ पर-वलहो समच्छरु किव-धट्ठज्जुण भिडिय परोप्परु सरेहिं विद्ध तव-सुय-सेणावइ पउ-वि ण चलइ सिलामउ णावइ सरवर-णियरु णहंगणे घोसइ उ जाणहं किह एवंहिं होसइ । दोणायरिय-दुक्खु सुमरंतउ दियवइ धरिउ केण पहरंतउ जलु थलु णहयलु सरेहिं भरेसइ दुक्करु जण्णसेणि जीवेसइ ताम किवेण पिसक्केहिं चूरिउ को उवाउ णर-सालु विसूरिउ सारहि भणइ ण रणे पइसारमि जइ णासहि तो रहु ओसारमि
घत्ता तो दूमय-सुएण वुच्चइ हउं आसंकियउ। लइ णिय-वलु जाहुं एहु मई ण जिणेवि सक्कियउ॥
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