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छहत्तरिमो संधि
रहु ओसारिउ तो जत्तारें गउ धट्ठज्जुणु एण पयारें पेक्खेवि भजमाणु तं संदणु पच्छइ धाइउ गउतम-णंदणु तहिं अवसरे जिह गुरुसुय-पंडिहिं जाउ जुज्झु कियवम्म-सिंहडिहिं पिहिउ परोप्परु सरवर-जालेहिं अमर तिडिक्किय जाला-मालेहिं वीस चउक्क मुक्क पुणु भाएं णव-वि सिलीमुह दुमयहो तोएं जायवेण धणु-दंडु स-जीयउ छिण्णु भिण्णु गंडयले पडीवउ मुच्छा-विहलु समाउलिहूएं कहि-मि समोसारिउ णिय-सूएं पइसइ भद्दिओ वि पंडव-वले करि-मयरु व मयरहर-महाजले
घत्ता जालंधर-सेण्णु ताम णिरुद्ध कइद्धएण। णं वणे गय-जूहु सीहें वेहाविद्धएण॥
। [१४] एक्क-रहहो गंडीव-विहत्थहो णव सामंत पधाइय पत्थहो सउसुइ-सत्तुसेण्णु सत्तुंजउ मित्तदेउ देवाह-मि दुज्जउ मित्तधम्मु धम्मालंकरियउ मित्तसेणु सेणु व ओयरियउ चंदसेणु चंदुजल-वयणउ सत्तुकामु कायउ जलणयणउ णवमउ तहिं णामेण सुसम्मउ धाइय सव्व करेप्पिणु सम्मउ सव्वेहिं सव्वसाइ सम-कंडिउ णं चंदण-तरु सप्पेहिं मंडिउ तेण-वि पंचहिं सउसुइ घाइउ . अट्ठहिं चंदसेणु विणिवाइउ वीसहिं सत्तुंजउ परिपूरिउ सत्तहिं सत्तुकामु मुसुमूरिउ
घत्ता अवसेसा पंच पंच-सरेहिं पंचेडिय। . गय कर विहुणंत करि जिह सीह-चवेडिय॥
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