________________
रिहणे मिचरिउ
२६४
८
कोव-जलण-जालोलि-पलित्तई जय-वडाय-उद्दालण-चित्तई
घत्ता पडिकेसव-केसव-साहणइं रहसें कहि-मि ण माइयइं। णं उत्तर-दाहिण-सायरहं जलई परोप्परु धाइयइं॥
४
भिडियइं उब्भिड-भिउडि-करालई वलइं वे-वि वहु-वहल-वमालई मुक्क-णिरंतर-सरवर-जालई तुलिय-भयंकरेण करवालई हरि-धुय-धूली-धूसर-चिहुरई पहरण-घण-वण-वेयण-विहुरई सोणिय-कद्दम-खुत्त-गइंदई कंचण-खंचिय-रहवर-विंदई रत्त-तरंगिणि-अमुणिय-थाहइं सिर-सय-उप्परि-वाहिय-वाहइं तहिं अवसरे रण-रहसुद्दामहो धाइउ अज्जुणु आसत्थामहो णिक्किवि किवहो भीमु किव-जेट्ठहो सच्चइ भोयहो भोय-वरिठ्ठहो स-कलुसु कालजमणु तालद्धहो सई णक्खत्तणेमि जरसंधहो
घत्ता पज्जुण्णहो सव्वई साहणई संवुहे सच्चुकुमार-वलु। जम-धणय-पुरंदर-पेक्खएहिं णं झुल्लाविउ गयणयलु ।।
[८] ताम धणंजएण गुरु-णंदणु संदाणिउ संदणेण स-संदणु आहय हय धणु पाडिउ हत्थहो। लेवि सिहा-मणि घल्लिउ तत्थहो गुरु-सुउ भणेवि णरेण ण घाइउ ताम विओयरेण किउ छाइउ सो-वि पण? मुएवि णिय-संदणु तहिं गउ जहिं गउ दोणहो णंदणु सच्चइ जिणेवि ण सक्किउ भोएं ल्हसिउ सो-वि जयलच्छि-विओएं तिण्णि-वि कुल-परिवाडिहे चुक्का कहि-मि सलज्ज तवोवणु ढुक्का कालजमणु कालाणल-दूसहु काल-जलय-अलयालि-समप्पहु कालकूड-विस-विसम-विलोयणु मलय-महागिरि-मंदर-चोयणु
४
८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org