SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रिट्ठणे मिचरित ४ आहउ कहो-मि अत्थि करवालें। सो णिवडंतु लइड वेयालें थवेवि महारहे-ईसासुट्ठए पउलिउ पहरणग्गि-अंगिट्ठए सोणिय-पाणु करतें चक्खिउ मिट्ठ भणेवि णिय-कंतेहिं रक्खिउ कहि-मि भडहो सिव उवरे विलग्गइ हियउ लेवि कंठुल्लए लग्गइ अहरु धरइ सरु करइ सुहाविणि पुरिसायंति णाई वर-कामिणि कहि-मि कवंधु णडइ परितुट्ठउं चंगउ जं रिउ-वयणु ण दिट्ठउ कहि-मि कवंधे णहंगण-गामिणि झत्ति परिट्ठिय रेवा सामिणि णाइ सवेयणेहिं व णियंगेहिं परुवइ भडु णाणाविह-भंगेहिं घत्ता कत्थइ असि-करहो कवंधहो उप्परि गिद्ध परिट्ठियउ। सामिय संमाणु सरेप्पिणु णं पडिवउ भडु उट्ठियउ॥ ८ तहिं रयणी-मुहे अक्खय-तोणे पंडव-वलु संताविउ दोणे आयस-तोमरेहिं ओसारिउ तम-पडलु व रवियरि [वि]णिवारिउ ता मंभीस देवि सिवि धाइउ णं गयवरु गयवरहो पराइउ दसहिं सरेहिं विद्धु किवि-कंतें तेण-वि तीसेहिं कोवु वहंतें गुरु-सारहि भल्लेण वियारिउ घुम्माविउ कह कह-वि ण मारिउ तो हय हणेवि सिविहे सोणासे सीसु छिण्णु सयवत्तु व हंसें तावरणंगण-पंकय-भिंगें विद्ध भीम वारहहिं कलिंगें तिहिं सारहि वच्छच्छलि ताडिउ विहलंघलु रह-कुव्वरे पाडिउ घत्ता उप्पइउ णहंगणु लंघेवि मारुइ रोसाऊरियउ। स-गइंदु कलिंगु पडतेण मुट्ठि-पहारें चूरियउ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy