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________________ ३७ एव - मितउ आएसें जुज्झमि धत्ता एवं चवेवि चंपाहिवइ जेम गइंदु महा-गयहो ताव स-चक्करक्खु स-जणद्दणु स-रह स सारहिं पत्तु धणंजउ णं हुवहु हंतु तण-कट्ठइं व सर संधेवि सव्वायामें सत्तहिं वासुएउ वच्छत्थले ते सर स-सर- सरासण - हत्थें पंचवीस गुरु-सुरण विसज्जिय दस रवि-सुण सत्त तहो ताएं [4] Jain Education International घत्ता सउणि सल्ल - सल- कण्ण-किव पंचहिं छहिं सत्तहिं हणेवि [६] दसहिं सरेहिं विद्धु चंपावइ पुणु पडिव सत्तहिं धणु-धीमें - विदीहर सर सर - लट्ठिहिं लइउ धणंजण सय - गण्णें रेण सरासणु छिण्णुखणंतरे अवरे रवि- णिण णाराएं तामणिवारिउ आसत्थामें दिणमणि - णंदणेण णरु छाइउ तइलोक्कुच्छलिय- महागुणहो । सवडम्मुहु धाइउ अज्जुणहो । विजउ पराजउ कासु ण वुज्झमि सत्तसट्टिमो संधि ८ - सभी समाहवि - णंदणु वलइं हणंतु रणंगणे दुज्जउ गरुडहो णायउलाई व तट्ठइं विद्धु थणंतरे आसत्थामें णं सारंग लग्ग णीलुप्पले सहिं दहिं विणिवारिय पत्थें सत्तरि दुज्जोहणेण पउंजिय अवर - वि अवरें कउरव - लोएं - अवर वि णरेण सामंत-सय । पुणु सहिहिं सहिहिं सव्व हय ॥ भूमि-भाउ भुवणिदिहिं णावइ तिहिं सिणि-णंदणेण तिहिं भीमें तिण्णि-वि ताडिय सहिहिं सट्ठिहिं सो पंचासहिं घाइउ कण्णें वहिं पडीवर भिण्णु थणंतरे चक्क - रक्ख दोहाइय घाएं अवरु लेवि धणु सव्वायामें विहि-मि परोप्परु कहव ण घाइउ For Private & Personal Use Only ४ ८ ४ ८ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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