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* 'घटत्वेन पटो नास्तीतिधीप्रतिबन्धकत्वविमर्शः * 'तदोदासीन्यमेव कमिति चेत् ? तृतीयांतपदोल्लिखितधर्मेऽवच्छेदकत्वस्य गौरवेण बाधात्, | तृतीयांतपदस्थलेऽन्वयितावच्छेदकावच्छेिप्रतियोगिताकत्वस्य च व्युत्पत्यलभ्यत्वात् । गौरवाऽप्रतिसन्धानदशायां घटत्वांशेऽवच्छेदकत्वाऽनुदासीनामपि च 'घटत्वेन पटो नास्तीति धियं घटत्वेन घटवत्ताधीन विरुणन्दि, तस्या घटत्वावच्छिन्नाऽभावधिय एव विरोधित्वात् ।
* जयलता * . . .... ---- तृतीयायाः सत्त्वे कथं नाऽवच्छेदकत्वाबगाहित्वं तस्याः ? इति शङ्कते-तदीदासीन्यं = अवच्छेदकल्वानवगाहित्वं एच कथं = कस्माद्धेतोः । तस्याऽपि निश्ववख्याऽवच्छेदकताबगाहित्वमेवाईतीति प्रश्नाशयः । मौलपूर्वपक्षी समाधत्ते - तृतीयान्तपदोल्लिखितधर्मेऽवच्छेदकत्वस्य कल्पनाया गौरबेण = अप्रामाणिकगौरवेण बाधात् = प्रतिबध्यत्वात् । 'तहि प्रागुपदर्शितदिशा अन्याय
कावन्छिन्न प्रतियोगिताकल्यस्यब व्यत्पतिलभ्यत्वात 'घटत्वेन पटो नास्ती'त्यन्न पटलावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वलाभेन वृद्धिमिच्छतो मूलहानिरायातेत्याशङ्कायां ननुबादी मौलपूर्वपक्षी आह-तृतीयान्तपदस्थले = तृतीयान्तपदसमभिन्याहारस्थले अन्वयितावच्छेदकावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वस्य = प्रतियोगितान्चयितावच्छेदकावच्छिन्नप्रतियोगितानिरूपकत्वस्याऽभावांश व्युत्पत्त्यलभ्यत्वात्, अन्यथा 'घटत्वेन कम्बुग्रीवादिमानास्तीति प्रतीतेप्रामाणिकल्वप्रसङ्गात् ।
ननु 'घटत्वेन पटो नास्ती'त्याकारकं अवच्छेदकत्वानवगाहि ज्ञानं घटत्वेन पटवतानाहार्यनिश्चयो न प्रतिबध्नाती कुतो:यसितमित्याशङ्कायां ननुवादी मौलपूर्वपक्षी आह- गौरवाऽप्रतिसन्धानदशायामिति । गौरवज्ञानस्य प्रतिबध्यतावच्छेदकत्वग्रहविरोधितया तज्ज्ञानदशायां तादृशप्रतीतिर्न सम्भवति । गौरवज्ञानमात्रमप्रयोजकम्, अघ्रामाण्यज्ञानानास्कन्दितस्यैव विरोधिज्ञानस्य सर्वत्र प्रतिबन्धकत्वात् । अनामाण्वज्ञानानास्कन्दितगौरवज्ञानविरहलामाय 'गौरवाज्ञानदझायामित्यनुक्त्वा 'गौरवाप्रतिसन्धानदशायामि' युक्तम् । घटत्यांशेऽवच्छेदकत्वानुदासीनामपि = 'पटनिष्ठप्रतियोगितानिरूपितस्यादन्छेदकत्यस्य घटत्वे वगाहिनीं । | इयं बुद्धिः भ्रमात्मिका समवसे या अपिशब्देन तदनवगाहिधीसमुच्चयः कृतः । 'घटत्वेन पटो नास्तीति धियं घटत्वेन घटवत्ताधीः = घटत्वविशिष्ट पदप्रकारकबुद्भिः, न विरुणद्धि = प्रतिबध्नाति । कस्माद्भतोः ? इत्याशङ्कायामाह- तस्याः = घटत्वविशिष्टयटनकारकधियः, घटत्वावच्छिन्नाभावधियः = चटत्वविशिष्टघटप्रतियोगिकाभावधियः घटल्बारछिन्न-घटनिष्ठप्रतियोगितानिरूपकाभावबुद्धेरिति यावत् । एक्कारेण घटत्वावच्छिन्न-पटनिष्टप्रतियोगिताकाभावप्रतीतेर्व्यवच्छेदः कृतः । विरोधित्वात्,
:-..-:-.-.. -:-... - - -- निश्चय प्रतिबन्धक नहीं हो सकता । अतएव उत्तरकाल में उसकी उत्पत्ति होने में कोई बाध नहीं है। यहाँ यह प्रश्न हो कि -- "तादृश उत्तर काल में उत्पत्र बुद्धि अवच्छेदकता अनवगाही कैसे होगी ? क्योंकि 'घटत्वेन पटो नास्ति' इस बुद्धि में तृतीया विभक्ति का प्रयोग किया गया है। जहाँ तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है, उस स्थल में अवच्छेदकता अवगाही बुद्धि होनी है" - तो यह ठीक नहीं है 1 इसका कारण यह है कि तृतीयांत पद से उपस्थापित पदार्थ में अवच्छेदकत्व की कल्पना करने में गौरव है । गौरव दोष ही तृतीया विभक्ति बाले पद के वायार्थ में अचञ्छेदकत्व का बाधक है । यहाँ यह शंका करना कि → “यदि 'घटत्वेन पटो नास्ति' इस बुद्धि में घटत्व में अवच्छेदकत्व धर्म की कल्पना न की जाय तब तो पटत्व धर्म में अवच्छेदकल की कल्पना करने का अनिष्ट प्रसंग उपस्थित होगा, क्योंकि प्रतियोगिता स्वान्वयितारच्छेदक धर्म से अवच्छिन्न होती है और तादृश प्रतियोगिना का निरूपकत्व जिस अभाव में रहता है उस अभाव में अन्वयितावच्छेदका. वच्छिन्नप्रतियोगिताकत्व संबंध से रहने वाला धर्म ही प्रतियोगिता का अवच्छेदक होता है। अतः प्रस्तुत में स्वावच्छिनप्रतियोगिताकत्व संबंध से अभाव में रहने वाले पटत्व धर्म में अवच्छेदकत्व धर्म की कल्पना करनी होगी जिसके फलस्वरूप में व्यथिकरणथर्मावच्छिन्न - प्रतियोगिताक अभाव की सिद्धि नहीं होगी" ठीक नहीं है, क्योंकि अन्धयितावच्छेदकावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्व संबंध का लाभ तृतीयांत पद के समभिन्याहार के अभाव में ही होता है - यह व्युत्पत्ति है । तृतीया विभक्त्यंत पद के समभिन्याहार स्थल में अन्वयितावच्छेदकावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्व का लाभ शाब्दबोधस्थलीय नियम से प्राप्त नहीं होता है। अतः प्रतियोगितावयितांचच्छेदकीभूत पटत्व में अवच्छेदकत्व की कल्पना का अनिष्ट प्रसंग उपस्थित नहीं होगा । यहाँ यह शंका करना कि । -> "अवच्छेदकताअवगाही बुद्धि अवच्छेदकताअनवगाही बुद्धि की विरोधी नहीं है- यह किसी स्थल में देखा गया है ? जिसके बल पर आप उपर्युक्त प्रतिपादन कर रहे हैं" - ठीक नहीं है । इसका कारण यह है कि गौरव का प्रतिसन्धान न होने पर घटत्व अंश में अवच्छेदकत्व की अवगाही 'घटत्वेन पटो नास्ति' इस बुद्धि की भी 'घटत्वेन घटोऽस्ति' यह पूर्वोत्पत्र बुद्धि प्रतिबन्धक नहीं होती है। इसका कारण यह है कि 'घटत्वेन घटोऽस्ति' ऐसी घटत्वविशिष्ट घटवत्ता अवगाही बुद्धि में घटत्वविशिष्ट घटप्रतियोगिक अभावविपयक बुद्धि का प्रतिबन्धकल है। अनः घटत्वविशिष्ट घटवत्ता का निश्रय केवल घटल्वविशिष्ट