Book Title: Syadvadarahasya Part 2
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 116
________________ ३१३ मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्डः २ - का. * आपादितव्याप्तिप्रत्याख्यानम् * || वायोरचाक्षुषत्वं तु विषयविधया वायोश्चाक्षुषाऽहेतुत्वादिति चेत् ? तर्हि एवमेव त्रुटिस्पर्शाऽ- | = = =* जयला == == | समवेतकत्चे द्रव्यचाक्षुषजनकतावच्छेदकीभूतजातिसत्त्वेऽपि द्रव्यान्य-द्रज़्यसमवेतविषयकस्पार्शनकारणतावच्छेदकप्रकृष्टत्वजातेरसत्त्वात्, तस्याः तद्व्याप्यत्वात् । न हि व्यापकसत्त्वेन व्याप्यप्रसञ्जनमर्हति, अन्यथाऽयोगोलके धूमापादनमपि सम्यक् स्यात् । इत्यञ्च | स्याद्वादिवचनानुसारेण द्रव्यान्य-द्रव्यसमवेतस्पार्शनकारणतावच्छेदकप्रकृष्टत्वजात्या एकत्ववृत्तित्वोपगमेऽपि उद्भूतस्पर्शाश्रयनीलi| सरेणुसमवेतस्पर्शस्पार्शनं नापाद्यतामर्हति, नीलत्रसरेणी द्रव्यान्य-द्रव्यसमवेतस्पार्शनकारणतावच्छेदकप्रकृष्टत्वविशिष्टैकत्वलक्षणस्याऽऽपादकस्य विरहात् । ततश्चोद्भूतनीलरूपस्योद्भूतस्पर्शच्याप्यत्वमबाधितमेवेति तात्पर्यम् । ननु द्रव्याऽन्य-द्रव्यसमवेतस्पार्शनकारणतावच्छेदकप्रकृष्टत्वजात्या द्रव्यगोचरचाक्षुषजनकतावच्छेदकैकत्ववृत्तिजातिव्याप्यत्वमङ्गीकार नाईति, वायोः चाक्षुषत्वप्रसङ्गात्, नैयायिककदेशीयस्य तब मते वायुस्पर्शस्पार्शनस्य सिद्भत्वेन द्रव्याऽन्य-द्रव्यसमवेतस्पार्शनकारणतावच्छेदकप्रकृष्टत्वजातेयुसमवेतैकत्वनिष्ठत्वात तद्व्यापकीभूतद्रव्यचाक्षुषकारणतावच्छेदकजात्यभ्युपगमस्याऽऽवश्यक| त्वात् । न हि व्याप्यसत्त्वे व्यापकाभावः कल्पनामर्हति । न च वायुचाक्षुषं भवति । अत एव द्रव्यान्य-द्रव्यसमवेत्तस्यार्शनकारणतावच्छेदकीभूतप्रकृष्टत्वजात्या द्रव्यचाक्षुषसाक्षात्कारकारणतावच्छेदकैकत्वनिष्ठजातिव्याप्यत्वमपि न युक्तमिति शङ्कायां पर आह. वायोरचाक्षुषत्वमिति । वायुगोचरचाक्षुषाभाव इति । विषयविधया + विषयत्वेन रूपेण, बायोः चाक्षुषाऽहेतुत्वादिति । विषयतासम्बन्धेन द्रव्यविषयकचाक्षुषं प्रति तादात्म्येन विषयविधया पृथ्वी-जल-तेजसामेव हेतुत्वेन वायोः द्रव्यविषयक| चाक्षुषजनकतावच्छेदकजातिविशिष्टकलाश्रयत्वेऽपि विषयविधया तादात्म्यनचाक्षषाऽकारणत्वान्न तत्र (= व चाक्षुषप्रत्यक्षं जायते । अतो वायोरचाक्षुषत्वेऽपि द्रव्यान्य-द्रव्यसमवेतस्पार्शनजनकतावच्छेदकप्रकृष्टजातेः द्रव्यचाक्षुषजनकत्वाबच्छेदकैकत्वसमवेतजातिव्याप्यत्वाऽङ्गीकारे बाधक नास्तीति नैयायिककदेशीयस्य वायुस्पर्शस्पार्शनवादिनोऽभिप्रायः । स्याद्वाद्याह- तहीति | विषयविधया वायोश्चाक्षुषा हेतुत्वाभ्युपगमेन द्रव्यविषयकचाक्षुषजनकतावच्छेदकीभूतजातिविशिष्टकत्वयत्त्वेऽपि विषयतासम्बन्धेन वायौ द्रव्यचाक्षुषानुत्पादोपपादने इति । एवमेव = द्रव्याइन्य-द्रन्यसमवेतस्पार्शनकारणताबच्छेदकीभूतप्रकृष्टत्वजातिविशिष्टैकत्वस्य सामानाधिकरण्येन नीलत्रसरेणुसमवेतस्पर्शनिष्ठत्वेऽपि विषयविधया तादात्म्येन नीलबस स्पार्शनजनकत्ताअपडेदक प्रकृष्टत्व जाति का हम स्वीकार नहीं करते है । यह कोई नियम नहीं है कि जहाँ व्यापक हो, वहाँ व्याप्य भी अवश्य हो । नियम तो ऐसा है कि जहाँ व्याप्य हो, वहाँ व्यापक अवश्य हो । प्रस्तुत में द्रव्यचाक्षुषजनकताबच्छेदक जाति व्यापक है, न कि व्याप्य । अतः नीलत्रसरेणुनिष्ठ एकत्व में द्रव्यचाक्षुपजनकतावच्छेदक जाति रहने पर द्रव्यान्यद्रव्यसमवेतविषयकस्पार्शनजनकतावच्छेदक जाति का आपादन नहीं किया जा सकता । इसलिए नील त्रसरेणु में उद्भूत स्पर्श को मानने पर भी उसके प्रत्यक्ष की आपत्ति का अवकाश नहीं है । अतः उद्धृत नील रूप का व्यापक उद्भूत स्पर्श है - ऐसा मानने में कोई दोप नहीं है। वाया. इति । यहाँ यह शंका हो कि -> "द्रव्यचाक्षुषजनकताअवच्छेदक जाति को द्रव्यान्य-द्रव्यसमवेतस्पार्शनजनकताअब। छेदक जाति की व्यापक मानी जाय, तब तो वायु का भी चाक्षुष प्रत्यक्ष होने लगेगा । इसका कारण यह है कि आपके मत के अनुसार वायु का स्पर्श स्पार्शन प्रत्यक्ष का विपय बनता है। इसलिए वायुगत एकत्व में आप द्रव्यान्य-द्रव्यस्पार्शनजनकतावच्छेदक प्रकृयत्व जाति को मानते हैं। व्याप्य के अधिकरण में व्यापक का होना अनिवार्य है। इसलिए वायुगत एकत्व में तादृश प्रकृष्टत्व जाति की व्यापक द्रव्यचाक्षुषजनकतावच्छेदक जाति भी सिद्ध हो जायेगी । जहाँ जहाँ व्याप्य होता है वहाँ यहाँ व्यापक होता ही है, यह सभी को मान्य है। द्रव्यचाक्षुषजनकतावच्छेदक जाति होने पर तो वायु का चाक्षुप प्रत्यक्ष होना आवश्यक है" - तो यह ठीक नहीं है । इसका कारण यह है कि वायु द्रव्यचाक्षुप का कारण ही नहीं है। आशय यह है कि विषयतासम्बन्ध से द्रव्यप्रत्यक्ष के प्रति तादात्म्य सम्बन्ध से द्रव्य विषयविधया कारण होता है। जैसे घटविषयक प्रत्यक्ष विपयतासम्बन्ध से घर में रहता है और तादात्म्य सम्बन्ध से घर भी यहाँ रहता है, जो विषयविधया स्वविषयक प्रत्यक्ष का कारण है। सामान्यतः यह कार्य-कारणभाव माना गया है। मगर बायु का कभी भी चाक्षुप प्रत्यक्ष नहीं होता है । इसलिए विषयतासम्बन्ध से द्रव्यचाक्षुप के प्रति विषयविश्या तादात्म्य सम्बन्ध से वायु को कारण नहीं माना जा सकता । पृथ्वी, जल और तेजस द्रव्य को ही द्रव्यचाक्षुप के प्रति विषयविधया कारण माना गया है। इसलिए वायुगत एकत्व में द्रव्यचाक्षुपजनकतावच्छेदक जाति होने पर भी वायुविषयक चाक्षुष प्रत्यक्ष की विषयता सम्बन्ध से वायु में उत्पत्ति होने की कोई संभावना नहीं है। अनेकान्तवादी :- नहि. इति । उस्ताद ! आप द्रव्यान्य-द्रच्यसमवेतविषयकस्पार्शनजनकताअवच्छेदक जाति को द्रव्यचाक्षुष % 3D

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