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* त्रुटिस्पर्शस्यानुनत्वसमर्थनम् * | कालभेदेनैकस्यामेव सतातामा सम्भव बत्वाचप्रवेशाऽपेक्षया महत्त्वोद्भूतरूपयोरेव प्रत्यासत्तिमध्ये प्रवेशस्य भुटिस्पर्शऽनुभूतत्वकल्पनस्य चोचितत्वात् ।
===* यलता * उद्देश्यान्वयप्रतियोगी वा धर्मो विशेषण्यं तदन्यदुपलक्षणं' (त.चिं.प्र.खं.पृ.८३४) इति वदन्ति ।
विशेषणमुपलक्षणं च ज्ञानविशेषमादाय धर्मिविशेषमादाय च निरूप्यत इति न सर्वत्राऽनुगतमस्ति, किन्तु तत्तद्व्यवहारानुरोधेन । विषयताविशेषरूपं तदुभयलक्षणमवमन्तव्यम् । अवधारणात्यविषयतावद् विशेषणं तदितरच्चोपलक्षणमिति तु स्याद्रादिनः समाकलितसर्वतन्त्ररहस्याः ।
साम्प्रतं प्रकृतं प्रक्रियते - कालभेदेन = भिन्नकालावच्छेदेन एकस्यामेव घटादिलक्षणायां व्यक्ती अनन्तत्वाचानां - अनन्तानां त्वगिन्द्रियजन्यप्रत्यक्षाणां सम्भवेन तावत्त्वाचप्रवेशाऽपेक्षया = द्रव्यान्य-द्रव्यसमवेतस्पार्शनजनकतावच्छेदकसम्बन्धकुक्षौ अनन्तस्पार्शननिवेशाऽपेक्षया महत्त्वोद्भूतरूपयोरेव प्रत्यासत्तिमध्ये = तादृशकारणतावच्छेदकसम्बन्धशरीरे, प्रवेशस्य उचितत्वादित्यनेनाऽस्याऽन्वयः । त्वाचोपलक्षणत्वाऽभ्युपगमे विशेष्यसम्बद्धाऽसम्बद्धानां सर्वेषामेव त्याचप्रत्यक्षाणां विनिगमनाविरहेण सम्बन्धदारीरे अवश्यनिवेश्यत्वेनाऽनन्तत्वाचप्रवेशप्रसङ्गः, एकस्मिन्नपि घटादिवस्तुनि काल-देश-पुरुषादिभेदेनाऽनन्तत्वाचानां विषय
। तथा च महद्रोरवमापतितं कथं अपसारणीयम : अतो लाघवात तादशजनकतावच्छेदकसम्बन्धकक्षी। महत्वोद्भूतरूपनिवेशः समीचीनः । एतेन विषयतया द्रव्यान्य-द्रव्यसमवेतस्पार्शनं प्रति त्वगिन्द्रियस्य स्वसंयुक्तत्वाचविशिष्टानुयोगिकसमवायेन कारणत्वमिति निरस्तम्, उपलक्षणीभूतानन्तत्वाचघटितसमवायापेक्षया स्वसंयुक्तमहत्त्वोद्भूतरूपवनुयोगिकसमवायस्यैव तधातौचित्यात् । महत्त्वपदेनात्र प्रकृष्टमहत्त्वं बोध्यं, तेन न यशुकस्पार्शनप्रसङ्गः ।
__ अथ त्वाचं विहाय प्रकृष्टमहत्त्वोद्भूतरूपयोः प्रत्याररत्तिघटकत्वेनोपादाने त्रुटिस्पर्शस्पार्शनं दुर्निवारं, त्रुटी प्रकृष्टमहत्त्वाद्भूतरूपयो: सत्त्वेन त्रुटिस्पर्श स्वसंयुक्तमहत्त्वोद्भूतरूपबदनुयोगिकसमवायेन त्वगिन्द्रियस्य सत्त्वादिति नैयायिकाशङ्कायामाह त्रुटिस्पर्शेऽ. नुद्भूतत्वकल्पनस्य चोचितत्वादिति । त्रसरेणुस्पर्शाऽस्पार्शननिर्वाहकृते तदनुत्कटत्वकल्पनोचिता, न तु त्वक्संयुक्तत्वाचबदनु
में विशेष्य से असम्बद्ध रह कर भी जो विशेप्य की अन्य से व्यावृत्ति (= व्यवच्छेद) करता है, वह उपलक्षण कहा जाता है । जैसे काक से उपलक्षित (= परिचित) देवदत्तगृह का, काकानुपस्थिति होने पर भी, अन्य गृह से व्यवच्छेद होने से काक देवदत्तगृह का उपलक्षण बनता है । देवदत्तगृह में सर्वदा या व्यावृति काल में काक का होना अनिवार्य नहीं है । इस तरह त्याचप्रत्यक्षानुयोगिकत्व को समवाय का उपलक्षण मानन का मतलब यह है कि स्पर्शविषयक प्रत्यक्ष की पूर्व क्षण में स्पर्शाश्रय का अवश्य त्वाच प्रत्यक्ष हो यह जरूरी नहीं है। किसी काल में घटादि का स्पानि प्रत्यक्ष होना चाहिए - इतना ही आवश्यक है। घटादि पदार्थ में उत्पत्तिक्षणावच्छेदन गुणमात्र का अभाव होता है। द्रव्योत्पत्ति के अनन्तर क्षण में द्रव्य में गुणोत्पत्ति होती है. यह नैयायिक सिद्धान्त है। इसके अनुसार घटोत्पादद्वितीयक्षणावच्छेदेन घट में उद्भूत स्पर्श गुण की उत्पत्ति होगी। त्वाचवत्त्व समवाय का विशेषण नहीं, बल्केि उपलक्षण होने की वजह द्वितीय क्षण में घटस्पर्श का स्पार्शन प्रत्यक्ष होने लगेगा, क्योंकि त्वगिन्द्रिय स्वसंयुक्तत्वाचवदनुयोगिक समवाय सम्बन्ध से तब घटस्पर्श में रहती है। किसी न किसी काल में घट का स्पार्शन प्रत्यक्ष होने वाला है। इसलिए घटस्पर्शप्रतियोगिक समचाय का वाचप्रत्यक्षाश्रय(- घट)अनुयोगिकत्व विशेषण बन सकता है। इस तरह घटोत्पत्ति के द्वितीय क्षण में घटस्पर्श का स्पार्शन प्रत्यक्ष होने लगेगा । मगर द्रव्योत्पनि की द्वितीय क्षण में द्रव्य इन्द्रियसंयुक्त होने पर भी द्रव्यसमवेत गुण-कर्म का साक्षात्कार नैयायिकमतानुसार नहीं होता है । इसलिए कारणताअवच्छेदक सम्बन्ध में उपलक्षणविधया भी त्वाचवत्त्व का प्रवेश नहीं हो सकता है । जो न उपलक्षण हो और न तो विशेषण हो वह धर्म व्यावर्तक नहीं बन सकता है। इसलिए स्वसंयुक्तसमवाय सम्बन्ध से ही स्पर्शनेन्द्रिय को ल्यान्यद्रव्यसमवेतविषयक स्पार्शन का कारण मानना संगत प्रतीत होता है।
उपलक्षणविधया त्याचप्रत्यक्षा 1 सम्बन्धकुक्षि में प्रवेश गौरवग्रस्त - स्यादादी *
कारभे. इति । दूसरी बात यह है कि त्याचवत्त्व को द्रव्यान्य-द्रव्यसमवेतषियक स्पार्शन के कारणतारच्छेदक सम्बन्ध का उपलक्षण मानने पर प्रश्र यह उपस्थित होता है कि एक-एक द्रव्य में भिन्न-भिन्न-कालावच्छेदेन एवं एक काल में भी पुरुषभेद से अनन्त स्पार्शन प्रत्यक्ष विषयता सम्बन्ध से रहने से किस स्थान का सम्बन्धशरीर में प्रवेश किया जाय ? चिनिगमक के अभाव से तादृश अनन्त त्वाच प्रत्यक्ष का सम्बन्धशरीर में निवेश करना होगा । यह तो बहत बड़ा गौरव है। इसकी अपेक्षा उचित तो यह है कि सम्बन्ध के अंश में महत्व और उद्भुत स्पर्श का ही निवेश किया जाय ? अनन्त स्वाच प्रत्यक्ष
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