________________
३३१ मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्डः २ - का.५ * आलोकादीनां क्षयोपशमविशेषे उपक्षीणत्वम् *
योग्यताविशेषश्च 'तदंशे ज्ञानावरणकर्मक्षयोपशम' इति न विशेषपदार्धाऽनिरुक्ति: ।। परेण तु चक्षुःसंयोगावच्छेदकावच्छिन्न-महदुतानभिभूतरूपवदालोकसंयोगत्वेन द्रव्यचाक्षुषत्वावच्छेि प्रति कारणता वक्तव्या । सा च न सम्भवति, ===..
------------- वस्तुत आलोकाअनरसायनादीनां ज्ञानाबरणक्षयोपशमे एवोपक्षीणत्वाद्रव्यचाक्षुष प्रति न कारणत्वम्, निरूपयिष्यमाणाऽन्यथासिद्धिग्रस्तत्वात् । यद्यपि तदंशविषयकस्याऽऽलोकायुद्धोध्यज्ञानावरणक्षयोपशमस्य तदंशविषयकक्षायोपशमिकज्ञानं प्रत्येव कारणत्वं तथापि चक्षुरादिविशेषसामग्रीसहकारेण तदंशविषयकचाक्षुषादिसाक्षात्कारोत्पत्तिर्न विरुद्धेत्यादिकं विभावनीयं सुधीभिः समयानुसारेण ।
ननु स्याद्वादिनये योग्यताविशेषस्य कारणमपि विशेषपदार्धा परिचयादसम्भवदुक्तिकमित्याशङ्कायो प्राह- योग्यताविशेष - श्रेति । 'तदंशे ज्ञानावरणकर्मक्षयोपशम' इति । केवलिनां चाक्षुषविरहात् 'क्षयोपशम' इत्युक्तम् । बहलतमे तमसि यूकादीनां घटादिचाक्षुषोदयात् अन्येषाश्च तदनुदयात् प्रकृते 'विषयग्रहणपरिणामरूपभावेन्द्रियग्राह्यतापरिणामो विषयनिष्ठो योग्यताविशेष' इत्यनुक्त्वा 'विषयांचे ज्ञानावरणकर्मक्षयोपशमो योग्यताविशेष' इत्युक्तम् । योग्यताविशेषस्य विषयनिष्ठत्वे तु तत्तत्पुरुषीयलनिवेशावश्यकत्वेन गौरवतादवस्थ्यात् ।।
परेण = नैयायिकेन तु चक्षुःसंयोगावच्छेदकावच्छिन्न-महद्भूतानभिभूतरूपवदालोकसंयोगत्वेनेति । चक्षुःसंयोगस्य योऽवच्छेदक; तंदवच्छिन्नो यो महदुद्भुतानभिभूतरूपबदालोकसंयोगः तत्त्वेनेति । द्रव्यचाक्षुपत्वावच्छिन्नं = लौकिकन्यचाक्षुषमात्र प्रति कारणता = निमित्तकारणता वक्तव्या । अन्यथा चक्षुःसंयोगावच्छेदकानवच्छिन्न-महत्परिमाणशून्यानुद्भूताभिभूता - लोकसंयोगादपि नयनपराङ्मुखादिद्रव्यचाक्षुषापत्तेः । यद्यपि योग्यताविशेषाऽपेक्षया दर्शितकार्यकारणभावे गौरवं स्फुटमेव । न च फलमुखत्वेन तस्याऽदोषत्वमिति वाच्यम्, लघुगत्यन्तरस्योपस्थिती प्रमाणप्रवृत्तिसमये सिद्धयसिद्धिभ्यां व्याघातेन फल
अवच्छेदक धर्म महत्परिमाणोद्भूतानभिभूतरूपचदालोकसंयोगशून्यद्रव्यचाक्षुषत्व होगा, जो अत्यंत गुरु (बडा) धर्म होने से गौरवदोषावह है। इसकी अपेक्षा उचित यही है कि सभी द्रव्यचाक्षुष के प्रति योग्यताविशेष को कारण माना जाय, जिसका कार्यतावच्छेदकधर्म द्रन्यचाभूपत्व होगा, जो अत्यंत लघु है। इसलिए द्रव्यचाक्षुषत्वावच्छेदेन योग्यताविशेप को कारण मानना ही ठीक है । अतः आलोक में द्रव्यत्व की सिद्धि नहीं हो सकेगी।
* योग्यताविशेष का निर्वचन.* योग्य, इति । यहाँ यह कहना कि -> 'योग्यताविशेष में विशेष पदार्थ की व्याख्या नामुमकिन होने से द्रव्यचाचपत्वावच्छिन्न के प्रति योग्यताविशेप को कारण नहीं माना जा सकता है" - असंगत है, क्योंकि योग्यताविशेष का अर्थ है उस अंश में ज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम । तदंशविषयक ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होने पर तदंश का चक्षु के सहकार से चाक्षुष साक्षात्कार होता है और उसके अभाव में चाक्षुप प्रत्यक्ष नहीं होता है। इसलिए द्रव्यचाक्षुप के प्रति उक्तस्वरूप योग्यताविशेप को कारण कहने में कोई दोप नहीं है । वस्तुतः तदेशविषयक ज्ञानावरणकर्मक्षयोपशम तदंशविषयक केवल चाक्षुप का कारण
नहीं है किन्तु तदंशविपपक मत्यादि ज्ञान का कारण है। फिर भी नेत्रादि इन्द्रियविशेप के सहकार से वह चाक्षुपादि ज्ञानविशेष | का जनक होता है ।
* आलोकसांयोगकारणतापक्ष में विजिगमनाविरह परण. इति । स्याद्वादी के मतानुसार द्रव्यचाक्षुप का कारणताअवच्छेदक धर्म तदंशविषयक ज्ञानावरणक्षयोपशमत्व होता है, जो लघुभूत है । जब कि नैयायिक को द्रव्यचाचप के कारणतावच्छेदकधर्मविधया चक्षुःसंयोगावच्छेदकावच्छित्र-महङ्ग्रतानभिभूतरूपवदालोकसंयोगत्व का अंगीकार करना पड़ेगा, जो अत्यंतगुरुभूत है। जिस भाग में चक्षुसंयोग हो उसी भाग में जब महत् परिमाण एवं उद्धृत और अनभिभूत रूप के अधिकरणीभूत आलोक का संयोग होता है, तभी उस भाग का चाक्षुष होता है - ऐसी नैयायिक विद्वानों की मान्यता है । मगर यह कारणता नामुमकिन है। इसका कारण यह है कि द्रव्यचाक्षुष के प्रति चक्षुःसंयोगावच्छेदकावच्छिन्न महद्भुतानभिभूतरूपाश्रयालोकसंयोग को कारण मानना या महद्भुतानभिभूतरूपाश्रयालोकसंयोगावच्छेदकावच्छिन्न चक्षुसंयोग को कारण मानना ? इस विषय में कोई निर्णायक युक्ति नहीं है। अतः द्रव्यचाक्षुषकारणता
-