________________
* एकशपस्थल पदान्तरस्मरणागीकारः * वबोधकैकशिष्टतदादिपदादुभयप्रतीतिर्न प्रादुर्भावत् ।
* गयलता * गुणत्ववत: बोधकात् एकशेषसमासगर्भितात् 'तो' इत्यादिपदात्, उभयप्रतीतिः = गुणद्वयावबोधो न प्रादुर्भवेदिति । अयमभिप्राय: 'सकृदुचरिते'त्यादिन्यायस्य 'एक पदमेकधर्मावच्छिन्नमर्थ बोधयती' त्यर्धकत्वे 'घटी स्त' इति वाक्यात समवायेन वटत्वावच्छिन्नस्य घटस्य कालिकविशेषणतासम्बन्धेन घटत्वावच्छिन्नस्य जन्यस्य सत: पटादेश्च युगपद् बोधः प्रामाणिक: स्यात्, तस्यैकधर्मावच्छिन्नार्धगोचरत्वात् । न च कालिकेन घटत्वं पटादौ कुतः सम्भवेदिति वक्तव्यम्, जन्यमानस्य कालोपाधित्वेन घटत्वविशिष्टत्वात् । न च पटादेः कालोपाधित्वेऽपि घटत्वस्य नित्यत्वेनाऽतधात्वान कालिकसम्बन्धप्रतियोगित्वं स्यादिति स्वाज्ञानं प्रकटनीयम्, कालिकेन वृत्ताबनुयोगिन एव जन्यत्वस्य नियामकत्वान्न तु प्रतियोगिनोऽपि । ततः तादृदाप्रतीतिप्रामाण्यं
एकं पदं एकसम्बन्धावच्छिन्ना या एकधर्मनिष्ठा प्रकारता तदाश्रयविशेष्यं युगपद बोधयितं समर्थमित्येवेतन्यायार्थ इत्यवश्यमपगन्तव्यमायुष्मताडकामेनाऽपि । न चैवं गौरवम्, प्रमाणप्रवृत्तिसमये सिद्यसिद्धिपराहतत्वेन फलमुखस्य तस्याग्दोषत्वात् । स चैक सम्बन्धः शक्यतावच्छंदकतावच्छेदकसम्बन्धो ज्ञेयः । घटपदशक्यतावच्छेदकीभूतघटत्वनिष्ठावच्छेदकताया अबच्छेदक एकसंसर्गश्च समवायः घटत्वस्य समवायेन घटे वर्तमानत्वात् यदा कालिकविशेषणता, न तूभयम् । ततो 'बटी' पदात समवाय-कालिकविशेषणताभ्यां न घटत्वविशिष्टबोधप्रसड़गः, तस्य सम्बन्धदयारच्छिन्नाकारतावगाहित्यात । एतेन विषपितासंयोगाभ्यां घटत्वावच्छिन्नबोधोऽपि परास्तः, एवं स्थिते एकशेषस्थले पदान्तरस्मरणाऽनभ्युपगमे विघयितासम्बन्धेन गुणत्ववतो ज्ञानादेः समवायेन गुणत्ववतो गन्धादे: बोधनार्थं 'ती' पदप्रयोगे कृतेऽपि युगपत् प्रकारिताद्यन्यतर-विषयितासम्बन्धावच्छिन्नगुणत्वनिष्ठप्रकारतानिरूपितविशेष्यतावत: समवायावच्छिन्नगुणत्वनिष्ठप्रकारतानिरूपितविशेष्यताबत्तश्च शाब्दबोधो न स्यात्, इष्टतादृशबोधनिष्ठविशेष्यितात्वावच्छिन्ननिरूपकतानिरूपितविशेष्यतानिरूपकप्रकारतयोरेकधर्मावच्छिन्नत्वेऽप्येकसंसर्गानबच्छिन्नत्वात् । तादृशबोधनिर्वाहकृते एकशेषस्थले पदान्तरस्मरणमुपगन्तव्यमेव । तदा 'तो' इत्यादिपदात् लुप्ततदादिपदस्मरणे सति विषयितया गुणत्ववतः समवायेन गुणत्ववतश्च बोधकाभ्यामुपस्थिततदादिपदाभ्यामुभयबोधोऽपि निर्वहेत् ।
प्रकरणकार एतादृशजटिलमीमांसाविधुरीभूतबुद्धे : शिष्यस्योपकाराय 'सकृदुचरिते'त्यादिन्यायस्य फलितार्थमाविष्करोति -
प्रकारता को एकसम्बन्धाच्छिन्नत्व विशेषण से विशिष्ट मानी जाय, यह जरूरी है। मतलब कि एक पद से एकसम्बन्धावच्छिन
और एकधर्मावच्छिन ऐसी प्रकारता से निरूपित विशेष्यता का अवगाही शाद बोध होता है - ऐसा उक्त न्याय का अर्थ मानना पड़ेगा। एकथर्मावच्छिन्न प्रकारता का अवच्छेदक सम्बन्ध वही हो सकेगा, जो शक्यता(बोध्यता) अवच्छेदकतावच्छेदक सम्बन्ध होगा। शक्यतावच्छेदक धर्म जिस सम्बन्ध से शपयार्थ (वाच्यार्थ) में रहता है, वह शक्यतावच्छेदकतावच्छेदक सम्बन्ध कहा जाता है। जैसे 'घटी' पद का शक्यार्थ है दो घट और शक्यतावच्छेदक है घटत्व । शक्यतावच्छेदकीभूत घटत्व धर्म (जाति) स्वाश्रय घट में समवाय सम्बन्ध से वृत्ति होने की वजह घटपदशक्यतावच्छेदकतावच्छेदकसम्बन्ध समवाय होगा । अतः घटपद एक काल में समवायसम्बन्धावच्छिन्न घटत्वनिष्ट प्रकारता के निरूपक शान्दरोध को ही उत्पत्र करेगा, न कि समवाय और कालिकविशेपणता सम्बन्ध से अवजिन्न प्रकारता के निरूपक शाब्दबोध को। इस तरह एकधर्मावच्छिन्नत्व को शक्यतावच्छेदकताबच्छेदकैकसम्बन्धावच्छिन्नत्व से घटित मानना आवश्यक है। जब यह उक्त रीति से सिद्ध होता है, तब एकशेषस्थल में पदान्तरस्मरण का अंगीकार न करने पर एक आपत्ति मुंह फाड़े खड़ी है। इसका बयान इस तरह किया जा सकता है । सुनिये, गुणत्व जाति समवाय संबंध से गन्ध, रस आदि २४ गुणों में रहती है और विषयितासम्बन्ध से 'अयं गुणत्ववान्' इत्याकारक ज्ञान आदि गुण में रहती है। उक्त दो सम्बन्ध से गुणवविशिष्ट दोनों का बोध कराने के तात्पर्य से जब 'ती' शन्द का, जो एकशेष समासगर्भित तत्पदस्वरूप है, प्रयोग करेगा तब उभय का शाब्दबोध श्रोता को नहीं हो सकेगा, क्योंकि उक्त दोष की विशेष्यता से निरूपित प्रकारता एक संबन्ध से अवच्छित्र नहीं है, किन्तु समवाय और विषयितारूप दो सम्बन्ध से अवच्छित्र है। एकशेष समास गर्भित 'ती' पद समवाय संबन्ध से गुणत्वविशिष्ट और विषयितासंबन्ध से गुणत्वविशिष्ट उभय का बोध तभी करा सकता है, जब लुप्त पदान्तर का स्मरण माना जाय । लुप्तपदान्तरविषयक स्मरण होने पर दो तत् पद उपस्थित । होते हैं, जिससे समवायसंबंधावच्छिन्नगुणत्वनिष्टप्रकारतानिरूपितविशेष्यताआश्रय का एवं विपयितासम्बन्धावच्छिन्नगुणत्वनिष्टप्रकारतानिरूपितविशेप्यताविशिष्ट का युगपत् बोध उपपन्न हो सकता है। अतः एकशेषस्थल में पदान्तर का स्मरण आवश्यक है - यह निर्विवाद सिद्ध होता है।