________________
३०७ मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्डः २ का. ५ उद्भूतस्पर्शस्यानुद्भूतस्पर्शजन्यत्वे विप्रतिपत्तिः *
जनकताया इवाऽनुद्भूतस्पर्शस्याऽपि निमित्तभेदसंसर्गेणोद्भूतस्पर्शजनकतासम्भवात् दृष्टान्ताऽसम्प्रतिपत्ते: /
जन्याऽनुद्भूतरूपं प्रत्यनुद्भूतेतररूपाभावस्य कारणत्वपक्षे तप्ततैलस्थादनुद्भूतरूपाद् वहेः उद्भूतरूपभागान्तराऽऽकर्षेणैवोद्धृतरूपोत्पत्तिस्वीकारात् अत्र दृष्टान्ताऽसम्प्रतिपतिरिति चेत् ? * गयलवा * -
|तोद्भूतस्पर्शाऽसमवायिकारणीभूतस्य नीलवसरेणुस्पर्शस्योद्भूतत्वमेवेति नीलसरेणी नोद्भूतनीरूपस्योद्भूतस्पर्शव्यभिचारित्वमिति तमसो नीलरूपवत्त्वे उद्भूतस्पर्शाभाव एवं व्यापकाभावत्वेन रूपेण बाधक इत्येकान्तवादिशक्काशयः ।
स्थाद्वादी तन्निराकरणे हेतुमाह अनुद्भूतरूपस्य = त्वन्भते तततैलस्थवयवयवाज्नुद्भूतरूपस्य, उद्भूतरूपजनकतायाः दहनोद्भूतरूपाऽसमवायिकारणतायाः इव अनुद्भूतस्पर्शस्यापि = नीलत्रसरेणुसमवेतानुद्भूतस्पर्शस्यापि निमित्तभेदसंसर्गेण अदृष्टादिनिमित्तविशेषसम्बन्धवशेन उद्भूत्तस्पर्शजनकतासम्भवात् = चतुरणुकसमवेतोद्भूतस्पर्शाऽसमवायिकारणत्वसम्भवात् | दृष्टान्ताऽसम्प्रतिपत्तेः = पाटितपदसूक्ष्मावयवोदाहरणे विप्रतिपत्तेः । प्रयोगस्त्वेवम् - नीलत्रसरेण्वनुद्भूतस्पर्शाऽसमवायिकारणक| स्पर्धाः उद्भूतः अदृष्टादिनिमित्तविशेषसमवहित्वात्, अतितप्ततैलान्तः परतिदहनावयवानुद्भूतरूपाऽसमवायिकारणकरूपविशेषवत् । एतेन यदि तमो द्रव्यं रूपवद्रव्यस्य स्पर्शाऽव्यभिचारात् स्पविद्द्रव्यस्य महतः प्रतिधातधर्म्मत्वात् तमसि सञ्चरतः प्रतिबन्धः | स्यात्, महान्धकारे च भूगोलकस्येव तदवयवभूतानि खण्डाऽवयविद्रव्याणि प्रतीयेरन्निति प्रत्युक्तम्, यथा प्रदीपान्निर्गतैरवयवैरदृष्ट| वशादनुद्भूतस्पर्शमनिचिडावयवमप्रतीयमानखण्डाऽवयविद्रव्यप्रविभागमप्रतिश्रातिप्रभामण्डलमारभ्यते तदेव तमः परमाणुभिरपि तमो
=
द्रव्यारम्भसम्भवात् ।
एकदेशीयः परः शङ्कते जन्याऽनुद्भूतरूपमिति । इति चेदिति पर्यन्तः शङ्काग्रन्थः । जन्याऽनुद्भूतरूपं प्रति अनुद्भूतेतररूपाभावस्य प्रतिबन्धकाभावविधया कारणत्वपक्षे तप्ततैलस्थात् अनुद्भूतरूपात् = अनुत्कटरूपाश्रयात् वह्नेः अनुद्भूतरूपोत्पत्तिः न सम्भविनी, तस्य उद्भूतरूपाश्रयदहनभागान्तरसंवलितत्वात् उद्भुतरूपस्य प्रतिबन्धकत्वात् । रूपसामान्यसामग्रीसत्त्वात् || अनुद्भूतरूपप्रतिबन्धकसत्त्वाच्च तत्रोद्भूतरूपोत्पत्तिः । एवमप्यनुद्भूतरूपादुद्भूतरूषोत्पादो दुर्निवार इत्यत आह- उद्भूतरूपभागान्तराकर्षणेनैवोद्भूतरूपोत्पत्तिस्वीकारादिति । एवकारेणाऽतितप्ततैलस्थदनाऽवयवस मतानुद्भूतरूपव्यवच्छेदः कृतः । अत्र = उद्भूतस्पर्शस्यानुद्भूतस्पर्शजन्यत्वे दृष्टान्ताऽसम्प्रतिपत्तिः = तप्ततैलस्थदहनानुद्भुतरूपजन्योद्भूतरूपनिदर्शनविप्रतिपत्तिरित्यर्थः ।
भी उद्भूत स्पर्श का अनुमान हो जायेगा। अतः नील द्रव्य के त्रसरेणु में भी उद्धृत नील रूप में उद्भूत स्पर्श का व्यभिचार नहीं हो सकता" < किन्तु यह नामुनासिब होने का कारण यह है कि फादे हुए नील पट के सूक्ष्म अवयव में भी उद्भूत स्पर्श के होने में प्रमाण न होने से सम्प्रतिपन्न स्वीकृत नहीं है । यदि नैयायिक की ओर से यह कहा जाय कि - -> "पट के सूक्ष्म अवयवों में उद्भूत स्पर्श न मानने पर पट = अवयवी में उद्भूत स्पर्श ही नहीं हो सकेगा " - तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि जैसे उद्भूत रूप की उत्पत्ति अनुद्भूत रूप से होती है, ठीक वैसे ही अनुद्भुत स्पर्श से अदृष्ट आदि निमित्तविशेष के सहयोग से उद्भूत स्पर्श की भी उत्पत्ति हो सकती है। पट के सूक्ष्म अवयव के सम्बन्ध से चक्षु से अश्रुपात की उत्पत्ति भी अश्रुनिपात के प्रति चक्षु और फाड़ हुए पद के सूक्ष्मावयत्र के संयोग को कारण मान लेने से सम्पन्न हो सकती है । अतः पट के सूक्ष्म अवयवों में उद्भूत स्पर्श की कल्पना अप्रामाणिक एवं गौरवग्रस्त होने से त्याज्य है। इस प्रकार उद्भूत रूप पट के सूक्ष्म अवयवों में भी उद्भूत स्पर्श का व्यभिचारी सिद्ध होता है ।
अथवा 'न च पाटित..' से 'दृष्टान्ताऽसम्प्रतिपत्ते:' पर्यन्त ग्रन्थ की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि पट के सूक्ष्म अवयवों का दृष्टान्त नीलद्रव्य के असरेणु में उद्भूत स्पर्श की अनुमिति के अनुकूल दृष्टान्त के रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता है, क्योंकि अनुद्भूत रूप में उद्भूत रूप की जनकता के समान निमित्तविशेष के सहयोग से अनुद्भूत स्पर्श में उद्भूत स्पर्श की जनकता संभव होने से यह अनुमान कि -> " नील द्रव्य का त्रसरेणु उद्भूतस्पर्शवान है, क्योंकि उद्भूतस्पर्शवान् चतुरणुक आदि का जनक है, जैसे पाटित पट का सूक्ष्म अवयव, अथवा 'नीलद्रव्य के त्रसरेणु का स्पर्श उद्भूत है, क्योंकि वह चतुरशुक में उद्भूत स्पर्श का जनक है, जैसे पाटित पट के सूक्ष्मावयव का स्पर्श" <- निराधार है । रेणु में उद्भुत स्पर्श नामुमकिन स्याद्धादी जन्यानु इति । यदि नैयायिक- वैशेषिक मनीषियों की ओर से यह कहा जा सकता है कि
++
-
" स्यावादी का यह