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(आदिवासी समाजका पुरोहित ) नवदंपतिको पारस्परिक स्नेहसंवर्धन व सौंदर्य परिवर्द्धनार्थ प्रदान करता है। प्राचीन मूर्तियोंका मुखसौंदर्य अनुपम रहता है। ऐसी मूर्तियोंके मौखिक सौंदर्यवाले स्थानको बारीक छेनीसे खरोच लिया जाता है । पपड़ियोंका चूर्ण ही मोहिनीकी पुड़िया है, बेंगा और समाजके सदस्योंका मानना है कि इसे लगानेसे मूर्तिके समान अपना भी मुखमंडल सौंदर्यसे उद्दीपित हो उठता है । इस अंधपरंपराने सहस्राधिक मूर्तियोंके सौंदर्यका निर्दयतापूर्वक अपहरण किया। इस प्रकार कलाके महत्त्वको न जाननेवाले वर्गको अोरसे भयंकर अाघात, इन संस्कृति के मूक प्रतीकोंको सहना पड़ता है ।
अाज प्रांतमें ऐसा कलाकार नहीं जो शोधकी साधनामें अपने आपको खपा दे। पुरातत्त्वविभाग भी पूर्णतया उदासीन है, वेतनभोगी, कर्मचारी के पास उतना समय नहीं कि वह खण्डहरोंमें पथराये हुए प्रत्येक प्रतीककी अन्तरध्वनि सुन सके। प्रांतीय शासनकी उपेक्षापूर्णनीति तो बहुत ही खलती है, न तो शासनने कभी स्वतंत्र रूपसे एतद्विषयक अन्वेषण प्रारंभ किया एवं न स्वतंत्र कार्य करनेवाले कलाकारोंको प्रोत्साहित ही किया । हाँ, सांस्कृतिक व लोककल्याणकी पारमार्थिक भावनासे उत्प्रेरिक होकर कार्य करनेवालोंके बीच रोड़े अटकानेका कार्य अवश्य किया। उनपर घृणित आरोप लगानेमें शासनके जी-हुजूरियोंको तनिक भी संकोच नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि शोध विषयक कार्य शासनको सुहाता नहीं है । महाकोसलके जैन-पुरातत्त्व पर नवीन प्रकाश
कला और संस्कृतिके विकासमें युगका बहुत बड़ा साथ रहता है। सूचित प्रदेशके जैन पुरातत्त्वपर यह पंक्ति सोलहों आने चरितार्थ होती है ।
खण्डहरोंके वैभवमें पृष्ठ १३१ से १८४ में महाकोसलके जैन पुरातत्त्वपर प्रकाश डाला गया है, किंतु उल्लिखित प्रकाश विषयक फर्मे छपनेके बाद मुझे महाकोसलके नवीन खंडहरोंकी यात्रा करनेका सुअवसर प्राप्त हुआ।
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