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परंपरात्रोंका भौतिक इतिहास भी इन कृतियोंको समझनेमें सहायक होता है।
७. इतिहास, सभ्यता और संस्कृति-कागंभीर व तुलनात्मक अध्ययन नितान्त अपेक्षित है, यही तो वास्तविक चक्षु या प्रेक्षणशक्तिका मूलस्रोत है । राजनैतिक और भौगोलिक इतिहास व संस्कृतिका समुचित ज्ञान न हो तो उपकरणाश्रित सभ्यताको अात्मसात् करना असंभव हो जायगा । इतिहासके द्वारा ही तो कलामें कालकृत विभाजन संभव है। समय-समयपर सामाजिक परिवर्तनके कारण सभ्यता पर जो प्रभाव पड़ता है, उसका वास्तविक ज्ञान उपयुक्त अन्वेषणपर अवलंबित हैं । आवश्यकीय शास्त्रीय व पारंपरिक अनुभवमूलक ज्ञानके अतिरिक्त पुरातत्व विभाग व प्राच्य विद्या सम्मेलनके वार्षिक वृत्तांत एवं साहित्य, संस्कृति और कलापर अधिकारी विशिष्ट विद्वानोंके निबंधोंका मनन भी आवश्यक है। अध्ययन जितना क्रियात्मक होगा कलाकार उतनी ही गवेषणामें सफलता प्राप्त कर सकेगा। मध्यप्रदेशके पुरातत्त्व __ "खंडहरोंके वैभवका" मुख्य भाग मध्यप्रदेशके पुरातत्त्वसे सम्बद्ध है। मध्यप्रदेश ऐसा भू-भाग है, जहाँ संस्कृतिके मुखको उज्ज्वल करनेवाली विपुल कलात्मक राशिके रहते हुए भी शोधकोंकी दृष्टि से अद्यावधि उपेक्षित ही रहा है। जनरल कनिंघम और राखालदास बनर्जी, डा० हीरालाल
आदि कुछ विद्वानोंने अपने संस्कृतिपरक ग्रन्थों में प्रसंगतः प्रांतकी कलात्मक संपत्ति का उल्लेख किया है; किंतु उसकी व्यापकताको देखते हुए वह नगण्य है। जिन्होंने स्वयं अरण्य व खंडहरोंमें भ्रमणकर एतद्विषयक अनुभव प्राप्त किया है, उनका मत है कि जितनी गवेषणा हो चुकी है और उनका जो महत्त्व पुरातत्त्वविभाग द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है, उससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण व सौंदर्यसंपन्न साधन अाज गवेषणाकी प्रतीक्षामें है।
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