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४४ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
और अर्थाभाव । उसने दिल्ली के लाल किले में संगमरमर की एक मस्जिद, लाहौर में बादशाही मस्जिद और काशी के विश्वनाथ मन्दिर का ध्वंस करा, उसी के भग्नावशेषों पर एक और मस्जिद का निर्माण कराया, परन्तु उन सबमें शिल्प-निर्माणकला के ह्रास का आभास मिलता है।
औरंगजेब के अनन्तर मुगल शासकों की शक्ति क्षीण और उनका वैभव विलुप्त होता जा रहा था, अतः वास्तुकला का शाही दरबारों से उठ जाना स्वाभाविक था।
दूसरी ओर, शाहजहाँ के युग के उपरान्त, जबकि स्थापत्यकला पतनोन्मुख हो रही थी, भारत के विभिन्न भागों में इस कला को पर्याप्त संरक्षण और प्रोत्साहन मिल रहा था। जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने शिल्पकला के उत्कर्ष एवं आदर्श रूप 'जयपुर' नगर का निर्माण कराया; महाराणा राजसिंह ने उदयपुर के पास 'राजसमन्द' (निर्माण कार्य आरम्भ विक्रम संवत् १७१८, सम्पन्न १७३२) और महाराणा जयसिंह ने 'जयसमन्द' (निर्माण-कार्य आरम्भ विक्रम संवत् १७४४, सम्पन्न १७४८), महाराजा प्रतापपाल ने करौली में प्रसिद्ध 'शिरोमणि मन्दिर' नामक सरोवर तथा 'गजविलास' नामक महल (विक्रम १९वीं शती का अन्तिम चरण) का निर्माण कराया। हिन्दू नरेशों द्वारा इस युग में अनेक प्रसिद्ध दुर्गों, राज-प्रासादों, मन्दिरों, छतरियों, बागों, तालाबों आदि के निर्माण का उल्लेख मिलता है । इन वास्तुकृतियों में हिन्दू-मुगल शैली के समन्वय का परिचय मिलता है।
इस युग की अन्य कलाकृतियों में उल्लेखनीय हैं-जयसिंह की वेधशाला, अहल्या बाई के मन्दिर, अमृतसर में सिक्खों का स्वर्ण-मन्दिर, लखनऊ के नबावों द्वारा निर्मित उनके दो-एक इमामबाड़े तथा विलास
१. देखिए-जगदीशसिंह गहलोत : राजपूताने का इतिहास (पहला भाग),
पृष्ठ ११३, १३४, ५८६,६८८, ६८६ ।