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नैतिक, धार्मिक एवं दार्शनिक परिपाव
उर्जन
पाप-बुद्धि, दुष्ट प्रकृति और भ्रष्टाचरण वाला दुर्जन होता है। उसकी क्रूरता, कुटिलता और भयानक आकृति के कारण उसे देखने से भी हृदय में भय एवं ग्लानि का भाव उदित होता है । दुर्जन तथा श्लेष्मा की प्रकृति समान है, उन्हें भोग के लिए ज्यों-ज्यों मधुर दिया जाता है, त्यों-त्यों उनकी कोपाग्नि बढ़ती जाती है। जैसे, विषधर को दूध पिलाने से अमृत की प्राप्ति नहीं होती, वैसे ही दुर्जन से प्रीति करने पर सुख की उपलब्धि नहीं होती।'
नारी
नारी-विषयक नीतियों में आलोच्य कवियों ने नारी के विविध रूपों पर प्रकाश डाला है। शील-विहीना नारी उनकी दृष्टि में निंद्य रही है और शीलवती नारी उनकी प्रशंसा का भाजन बनी है।
शीलवती
__ शीलवती नारी वरेण्य है। वह नारी जाति में शिरोमणि है । शीलरत्न-विभूषिता नारी ही जीवन और जगत् में सुख की वर्षा करती है । ऐसी नारी धन्य है, उसका जीवन धन्य है :
वे धन्य त्रिया जग माहीं । जे शीलवती सुखदाहीं ॥ उनको धन जीवन जानौ । जिन शील जगत प्रगटानी ।।
१. दुर्जन और सलेखमा, ये समान जग माहि । ज्यों-ज्यों मधुरो दीजिये, त्यों-त्यों कोप कराहिं ॥
-पार्श्वपुराण, पद्य १११, पृष्ठ १४ । २. दुर्जन जन को प्रीति सों, कही कैसे सुख होय । विषधर पोषि पियूष की, प्रापति सुनी न कोय ॥
-वही, पद्य ११४, पृष्ठ १४ । 1. शीलकथा, पृष्ठ ६२ ।