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नैतिक, धार्मिक एवं दार्शनिक परिपाव
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शूरवीर
वह महासुभट, वीर और धीर होता है। दूसरों के प्राणों की रक्षा करना, उनकी पीड़ा को दूर करना उनका धर्म है । शूरवीरों की यह रीति नहीं है कि दुश्मन छाती पर चढ़ आये और वे घर में मुह छिपाकर बैठे रहें । उनकी हार हो या जीत, इसका विचार न कर वे तुरन्त रण के लिए कमर कस लेते हैं।'
सुभट सदैव ही रणोत्साह से झूमता है। वह सदैव ही शत्र पक्ष को चुनौती के साथ ललकारता है।'
वीर यदि लड़ते-लड़ते युद्ध-भूमि में अपने प्राणों का उत्सर्ग करके वहीं धराशायी हो जाये, तो वह धन्य है, इसमें उसकी कोई निन्दा नहीं । प्राण छूटने पर उसे वीरगति प्राप्त होगी और जीवित रहने पर उसे जय ।
शूर और कायर दोनों को ही मृत्यु को प्राप्त होना है। अन्तर इतना ही है कि शूर को यश और कायर को अपयश मिलता है। कायर की स्त्री का भी हतभाग्य है कि उसकी सभी हँसी उड़ाते हैं और उसे अन्य सुभटों की स्त्रियों द्वारा दिया गया व्यंग्य-विष पीना पड़ता है। कायर
और शूर को एक ही बार मरना है, किन्तु कायर के व्यवहार से उसकी पत्नी घुल-घुल कर अपने प्राणों को विजित करती है :
कायर अर सूरा सही, मरणो एक बार । झूरि-भूरि मरि जाहिगी, कायर नर की नार ॥
१. सूरन की नहिं रीति, अरि आये घर में रहें । __ के हारे के जीति, जैसी ह तैसी बने ।
-चेतन कर्म चरित्र, पद्य ६७, पृष्ठ ६२ । २. वही, पद्य १५, पृष्ठ ५६ । ३. सीता चरित, पद्य १४१४, पृष्ठ ७७ । ४. वही, पद्य १४१३, पृष्ठ ७७ । ५. वही, पद्य १४१५, पृष्ठ ७७ ।