Book Title: Jain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Bharti Pustak Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 381
________________ ३९२ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन स्वतन्त्र व्यक्तित्व है, वैसे ही उसकी कृति का स्वतन्त्र लक्ष्य है। इतना अवश्य है कि अधिकांश प्रबन्धकाव्यों में धार्मिक तत्त्व स्थल-स्थल पर झलक आये हैं। उनमें भक्ति-भावना का सहज सन्निवेश भी दिखाई देता है । थोड़े से काव्यों में आत्म-तत्त्व के निरूपण के लिए चिन्तनात्मक दार्शनिक भूमि का सहारा लिया गया है। वैसे सभी काव्य चतुर्वर्ग में से धर्म और मोक्ष को लक्ष्य में रख कर रचे गये हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390