Book Title: Jain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Bharti Pustak Mandir

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Page 388
________________ उपसंहार ३६६ इन कवियों द्वारा महाकाव्यों के साथ ही एकार्थकाव्य भी रचे गये जिनमें कवि लक्ष्मीदास कृत 'यशोधर चरित' और 'श्रेणिक चरित,' रामचन्द्र 'बालक' कृत 'सीताचरित' आदि इस युग की अच्छी कलाकृतियाँ मानी जा सकती हैं | आलोच्य युग में महाकाव्य और एकार्थकाव्यों के अतिरिक्त जो खण्डकाव्य लिखे गये, वे इन दोनों की अपेक्षा संख्या में अधिक हैं । इनमें नयीपुरानी दोनों प्रकार की शैलियों के खण्डकाव्य मिलते हैं । नयी शैली में रचे गये काव्य अपने युग के अन्य खण्डकाव्यों से अलग ही लगते हैं । वे प्रायः भावात्मक हैं और उनमें गेय शैली ( गीतिपरकता) को अपनाया गया है, जैसे—- विनोदीलाल विरचित 'राजुल पच्चीसी', 'नेमिनाथ मंगल' आदि । इसी प्रकार भैया भगवतीदास कृत 'चेतन कर्म चरित्र', 'शतअष्टोत्तरी', 'सूआ बत्तीसी,' 'मधुबिन्दुक चौपई' जैसे खण्डकाव्य दार्शनिक भूमि पर आधारित हैं और रूपक एवं प्रतीक शैली में रचे गये हैं । इन काव्यों में दर्शन का गूढ़ रहस्य काव्य के धरातल पर व्यावहारिक रूप में उतर कर आया है । शैलीगत नव्यता भी उनमें स्थल-स्थल पर झलकती है । उच्चकोटि के खण्डकाव्यकारों में भैया भगवतीदास के अतिरिक्त विनोदीलाल, आसकरण और भारामल्ल का नाम समादरणीय है । विनोदीलाल के खण्डकाव्यों (नेमि ब्याह, नेमिनाथ मंगल, राजुल पच्चीसी आदि) में कवि का अनुभूतिमय संसार साकार हुआ है । उनमें कृतिकार के प्राणों का स्पन्दन सम्मोहन छबि के साथ बाहर उतरा है; अनुभूति की सघनता में घनीभूत भावों को अभिव्यक्ति मिली है । वे गीतिकाव्य के निकट हैं और अपने लघु कलेवर में भी दिव्य हैं, मनोहर हैं । कवि आसकरण विरचित 'नेमिचन्द्रिका' खण्डकाव्य तत्कालीन प्रबन्धसाहित्य में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । गेय तत्त्व की प्रधानता, तीव्र भावान्विति, चरित्रोत्कर्ष एवं महान् उद्देश्य के कारण वह अमर है । भारामल्ल कवि की 'शीलकथा' समन्वयात्मक खण्डकाव्यों में अच्छी

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