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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रवन्धकाव्यों का अध्ययन
श्यक है कि पुद्गल-आगमन (आस्त्रव) को रोका जाये (संवर)। और जो कालुष्य उस पर जम चुका है, उसे पवित्र आचरण और आत्म-साधना आदि द्वारा दूर किया जाये (निर्जरा)। यही मोक्ष-मार्ग है । निष्कर्ष
नीति, धर्म एवं दर्शन विषयक विवेचन का निष्कर्ष यह है कि हमारे कवियों को नैतिक एवं धार्मिक आदर्शों का स्खलन असह्य था। वे दार्शनिक न थे, किन्तु उनके पास अपना एक दर्शन था, जिसकी अभिव्यक्ति उनकी कृतियों में देखने को मिलती है। नैतिक मूल्यों द्वारा उन्होंने व्यक्ति के व्यावहारिक आचरण पर, धार्मिक तत्त्वों द्वारा धार्मिक आचरण पर तथा दार्शनिक विवेचन द्वारा आत्म-स्वातंत्र्य पर बल दिया है । उनके काव्यों में इन तत्त्वों का समावेश प्राय: दो रूपों में हुआ है-(१) पात्रों के शीलनिरूपण में और (२) स्वतंत्र रूप से। ये सभी तत्त्व प्रबन्ध के कथा-पट में अच्छी प्रकार गूथ दिये गये हैं। नीति तत्त्वों की अवतारणा में प्रायः सरल शैली, धार्मिक विवेचन में सामान्य और दार्शनिक तत्त्वों के निरूपण में गम्भीर शैली का व्यवहार हुआ है।