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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
शीलविहीना
यह नारी का विचित्र एवं प्रवंचित रूप है। शील-रहित नारी अति चंचल और अविश्वसनीय होती है । उसका चरित्र अपार है, उसका रहस्य कोई पंडित ही जान सकता है :
नारि चरित्र विचित्र अपार । जाने जो पंडित को सार ॥'
पुण्यवान्
पुण्यवान् पुरुष धर्मात्मा होता है। उसका महान् व्यक्तित्व लोक के आकर्षण का केन्द्र, उसके कार्य अद्भुत, उसका व्यवहार मधुरतम और उसकी वाणी सुधासम होती है। इन सबके मूल में जो प्रभाव है, वह पुण्यार्थी का पुण्य है । पुण्यवान् जहाँ जाता है, वहीं सम्मान पाता है। 'शीलकथा' काव्य में कहा गया है :
पुन्यवंत नर जहं जहं जाय । तहं तहं आदर होत बढ़ाय ॥
बलवान्
मानव जीवन में शक्ति के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है; शक्ति के बल पर ही राज्य चलता है, शक्तिशाली पुरुष ही राज्य का स्वामी होता
जाको बल, ताही को राज। यही कारण है कि बलवान् से वैर मोल लेने में सुख कदापि नहीं मिल सकता। निर्बल बलवान् से सदैव हारा है, अस्तु अपने दुःख को अपने हृदय
५. यशोधर चरित, पद्य ३१४ । १. शीलकथा, पृष्ठ १४ । ३. नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ ८ ।