________________
प्रबन्धत्व और कथानक-स्रोत
१४६
पर क्रीड़ित वानरों, जलाशयों, उत्तुंग शिखरों और वन्य पशुओं की उपस्थिति द्वारा वह वन का सहज एवं समग्र दृश्य प्रस्तुत करने में समर्थ रहा है।
प्रायः दृश्य प्रसंग और परिस्थिति के अनुकूल एवं स्थानकालगत विशेषताओं से युक्त हैं। उनमें से अधिकांश भाषा की चित्रात्मक शक्ति से ओत-प्रोत हैं।
वास्तव में कवि भूधरदास की वर्णन-क्षमता अद्भुत है। वस्तु-वर्णनों को दृश्य-रूप में सामने रखने में वे बड़े सफल हैं। पार्श्वपुराण में पार्श्वकुमार की माता की सेवा-परिचर्या से सम्बद्ध यह दृश्य वातावरण की सरसता का चित्र प्रस्तुत करता है :
कोई चन्दन सों घर सींचे, सारे महल सुवास करी ॥ कोई आँगन देय बुहारी, झारै फूल-पराग परी ।। कोई जलक्रीड़ा कर रंज, कोई बहुबिध भेष किये ।। कोई मनिदर्पन कर धारै, कोई ठाड़ी खड़ग लिये ।। कोई गूंथि मनोहर माला, आवै आन सुगंध खरी ॥ कोई कलप तरोवर सों ले, फल फूलन की भेट धरी ॥ कोई काव्य कथारस पोख, कोई हास्य विलास ठवै ॥ कोई गावं बीन बजाव, कोई नाचत सीस नवै ॥
१. पार्श्वपुराण, पृष्ठ १३ । २. धारत चरन चपल अति चलै । पहुमी कांपे गिरिवर हलै ॥
भमें मुकुट चकफेरी लेत। ताकी रतनप्रभा छबि देत ।। बलयाकृति ह वै झलकै सोय । चक्राकार अगनि जिमि होय ॥ छिनमें एक छिनक बहुरूप । छिन सूच्छम छिन थूल सरूप ।। छिनमें निकट दिखायी देय । छिनमें दूर देह धर लेय ॥ छिन आकास मांहि संचरै । छिनमें निरत भूमि पर करै ॥
-वही, पद्य ११८ से १२०, पृष्ठ १०७ । ३. वही, पद्य १५० से १५३, पृष्ठ ११ ।