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चरित्र-योजना
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नहीं होते। तप-बल से वे केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं और लोगों को धर्मोपदेश देते हुए उनकी शंकाओं का समाधान करते हैं ।
नेमिनाथ
नेमिनाथ जैन-परम्परा में बाईसवें तीर्थंकर हैं, जिनके चरित्र की विशेषताएँ पार्श्वनाथ के चरित्र से बहुत कुछ मिलती-जुलती हैं। उनका रूप लुभावना है । आभूषणों से सजकर तो वे और भी मनोहर लगते हैं। तीनों लोकों में उनके समान बलशाली कोई नहीं है।' भाई कृष्ण के प्रति उनका पवित्र-निश्छल प्रेम झलकता है। उनका संवेदनशील और साधु हृदय करुणा, अहिंसा और त्याग की भावना से सम्पुटित है । वध के लिए घेरे गये पशुओं के आर्त निनाद को सुनकर वे वैवाहिक शृंगार को तिलांजलि देकर संसार से विमुख हो जाते हैं। वे सांसारिक सम्बन्धों को और मनुष्य जन्म को धिक्कारते हैं और सत्य की खोज में गिरनार पर्वत
१. पार्श्वपुराण, पद्य ४० से ४२, पृष्ठ १११ तथा ७६ से १३, पृष्ठ ११५-११६ । २. वही, पद्य ५५, पृष्ठ १२७ । '. वही, पद्य २३ से २६०, पृष्ठ १४१-१६८ । ४. नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ ६ । ५. नेमिनाथ मंगल, पृष्ठ ३ । ६ नेमीश्वररास, पद्य ६६, पृष्ठ ५८ ।
अरी तब हरि को सीस उठायौ हाँ । अरी भाई को कंठ लगायौ हाँ ।। अरी गहि बाँह सभा में लाये हाँ । अरी सिंहासन बैठाये हाँ ।
-नेमिनाथ मंगल, पृष्ठ ३ । नेमीश्वर रास, पद्य १०३२, पृष्ठ ६० ।। ९. नेमि उदास भये जबसे कर जोड़ि के सिद्ध को नाम लियौ है । अम्बर भूषण डाय दिये सिर मौर उतार के डार दियौ है ॥
-नेमि ब्याह ।