________________
१६२
जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
अन्य पात्र
__ अन्य उत्तम पात्रों में सुग्रीव, भामंडल, विभीषण (सीता चरित), अर्जुन, कर्ण, नन्द, वसुदेव, बलभद्र (नेमीश्वर रास) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके चरित्र का क्षेत्र सीमित है और इनकी बहुत कम चारित्रिक विशेषताएँ प्रकाश में आयी हैं। आगे उत्तम नारी चरित्रों का परिपाव द्रष्टव्य है।
नारी चरित्र
जैन कवियों ने उत्तम पात्रों के चरित्रांकन में उनके शीलसमन्वित साधनाभिमुख एवं आदर्शोन्मुख रूप को ही अधिक पल्लवित किया है। उन्होंने 'शील' धर्म की प्रतिष्ठापना के निमित्त नारी चरित्रों को अनेक बाधाओं से संग्रस्त कर आदर्श भूमि तक पहुंचाने का प्रयास किया है। वस्तुतः इन नारी चरित्रों में एक ऐसी आर्द्रता है जो पाठकों को सामान्य भाव-भूमि से ऊँचा उठाकर आत्मविभोर कर देती है । इनका स्वभावगत आदर्श चित्रण सार्वजनीन और सार्वकालिक है। इनके रूप-सौन्दर्य, क्रियाकलाप, संयोग-वियोग आदि के चित्र हमारे हृदय को अपने सहज रस से तरल बनाने में समर्थ हैं।
सीता, राजुल, मनोरमा, विजया आदि अनेक नारी पात्रों का चरित्रचित्रण सुन्दर बन पड़ा है। सीता, राजुल, मनोरमा के चरित्रों में उद्देश्य की दृष्टि से बहुत कुछ साम्य है । इन तीनों का सती एवं वियोग रूप ही विशेषरूप से मुखरित हुआ है । इन चरित्रों के माध्यम से नारी-हृदय की पावनता, कोमलता एवं दुर्बलता मनोहर रूप में अभिव्यक्त हुई है।
सीता
वह जीवन भर तप-ज्वाला में तपने वाली आदर्श नारी है। इस तपने में ही उसका चरित्र अधिकाधिक दीप्ति को प्राप्त होता जाता है । वनवास, हरण और निर्वासन-काल में उसके हृदय पर क्या नहीं बीतता ? राम