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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
'नेमिनाथ मंगल', 'नेमि-राजुल बारहमासा संवाद', 'नेमि-ब्याह', 'पंचेन्द्रिय-संवाद', 'राजुल पच्चीसी', 'सूआ बत्तीसी', 'नेमिचन्द्रिका' (विनोदीलाल), 'पार्श्वपुराण', 'शीलकथा', 'सप्त व्यसन चरित्र', 'निशिभोजन त्यागकथा', 'वर्द्धमान पुराण', 'धर्मपरीक्षा', 'पाण्डव पुराण', 'धन्यकुमार चरित्र', 'वरांग चरित' (पाण्डे लालचन्द), 'वरांग चरित' (कमलनयन), 'जिनदत्त चरित' (बख्तावर मल), 'जिनदत्त चरित' (कमलनयन), 'शान्तिनाथ पुराण', 'जीवंधर चरित" (दौलतराम), 'जीवंधर चरित' (नथमल बिलाला), 'नागकुमार चरित' आदि प्रबन्धकाव्य प्रायः परिमार्जित ब्रजभाषा में रचित है, किन्तु उनमें से कुछ में कहीं-कहीं ग्रामीण ब्रजभाषा की झलक भी मिल जाती है।
मौर धरौ सिर दूलह के कर कंकण बाँध दई कस डोरी । कूडल कानन में झलके अति भाल में लाल विराजत रोरी ॥ मोतिन की लर सोभित है छबि देखि लजें बनिता सब गोरी। लाल विनोदी के साहिब के मुख देखन को दुनिया उठ दौरी ॥
-नेमि ब्याह । बालक काया कू पल सोय । पत्र रूप जोवन में होय । पाको पात जरा तन करै । काल बयारि चलत झर परै ।। कोई गर्भ माहिं खिर जाय । कोई जनमत छोड़े काय । कोई बाल दसा धरि मरै । तरुन अवस्था तन परिहर ।
--पावपुराण, पद्य ६५-६६, पृष्ठ ५५ । ३. सषी सषी सों यौं कहै, हौं पूछत हौं तोहि ।
काम एक ए दोय हैं, बड़ो तमासो मोहि ॥ कोई कुमति तिन्ह देषि करि, लाज दई बिसराय । कहै सषी सौं इनहि छलि, लीजै बेगि बुलाय ॥
-धर्म परीक्षा, पद्य २६६, पृष्ठ १६ । एक पुरिष तापस के रूपा । जीवंधर को देखि अनूपा। पूछन लागो होय खुस्याला । केती दूर नगर है लाला ॥
-जीवंधर चरित (दोलतराम), पद्य ८६, पृष्ठ ६।