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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
(दुर्मिल), त्रोटक, काव्य छन्द, प्लवंगम, वरवीर, महाभुजंग प्रयात, मत्तगयंद, पावक, दंडक' मरहठा, कुलक, लीलावती, सुन्दरी, आर्या आदि उल्लेखनीय हैं । कुछ काव्यों में यथाप्रसंग इनका चयन हुआ है।
____कहना चाहिए कि आलोच्य कवियों ने स्वतन्त्रतापूर्वक छन्दों को चुना है । भाव, रस, प्रसंग आदि के अनुकूल जिस कवि को जो छन्द रुचा, उसी का व्यवहार कर लिया गया है । कहा जा सकता है कि सोरठा और दोहा छन्द युद्ध-वर्णन के लिए उपयुक्त नहीं है, पर कुशल कवि उन्हें भी इस योग्य बना सकता है, जैसा कि 'चेतन कर्म चरित्र' में देखा जाता है। फिर भी यह अस्वीकारा नहीं जा सकता कि छन्दों की अपनी एक प्रकृति होती है । उदाहरण के लिए, 'सवैया' छन्द शृगार और करुण रस की अभिव्यक्ति के
१. कितेक सषान संग में, सुगंध लाय अंग में,
गुमान की तरंग में, • सुसार गीत गावते । कितेक नृत्य चावसों करें, सुहाव भाव सों धरें,
सुपाव दाव सों करें, सुहाथ को फिरावते ॥ कितेक सुवाम साथ लै, सुवीन आप हाथ लै,
मृदंग सार वाथ लै, सुताल तें बजावते । सुरंग रंग लाय कैं, अबीर को लगाइ के,
गुलाल कों उड़ाई के, प्रमोद कू बढ़ावते ।।
-जीवंधर चरित (नथमल बिलाला), पद्य २४, पृष्ठ ४३ । बजहिं रण तूरे, दल बहु पूरे, चेतन गुण गावंत । सूरा तन जग्गो, कोउ न भग्गो, अरिदल पे धावंत ॥. ऐसे सब सूरे, ज्ञान अंकूरे, आये सन्मुख जेह । आपाबल मंडे, अरिदल खंडे, पुरुषत्वन के गेह ॥
-चेतन कर्म चरित्र, पद्य, १०५, पृष्ठ ६५ । (क) रोपि महा रण थंभ, चेतन धर्म सुध्यान को।
देखत लगहि अचंभ, मनहिं मोहकी फौज को ॥ (ख) दोऊ दल सन्मुख भये, मच्यो महा संग्राम । इत चेतन योधा बली, उतै मोह नप नाम ॥
-चेतन कर्म चरित्र, पद्य १५३-५४, पृष्ठ ७० ।