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३१४ जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
पर एक साथ दस सवैया ( तेईसा) १ छन्दों का सुललित प्रयोग है । कुछ काव्यों में सर्वैया इकतीसा भी प्रयुक्त हुआ है ।
कवित्त
१. शीलकथा, पृष्ठ ५५ से ५६ ।
२. मोकों नहीं विसवास कछू अब प्राणन को वह दे छुटकाई । अब कौन कौं देहुं दिखाय कमाई || पुनि सो तुम तातकों सौंपहु जाई । अब भेष फकीरी घरें हम भाई ॥ चंचल चपल बाल लोचन विसाल लाल भाल में विराजे रति भूषन - शीलकथा, पृष्ठ ५७ 1 संवारे है | - धर्म परीक्षा, पद्य १६०१, पृष्ठ ७७ । पार्श्वपुराण, पद्य ५ से ४२, पृष्ठ ε४-६७ ॥ (क) गंभीर घनाघन घोष जास । बहु सुन्दर सुंड सुगंध सांस ॥ सो काम सरूपी काम गोन। जा देखें मोहत तीन भौन ॥ - पार्श्वपुराण, पद्य १६, पृष्ठ १५ । (ख) सुख नींद रची तब सची तास । मायामय राख्यौ पुत्र पास ॥ कर कमलन बालक रतन लीन। जिन कोटि भानु छबि छीन कीन ॥ - वही, पद्य ३४, पृष्ठ ६७ ।
५.
'सवैया' की भांति यह छन्द अधिक कवियों को प्रिय नहीं रहा। भैया भगवतीदास ने 'शत अष्टोत्तरी' में इसको विशेषतः अपनाया है । उसमें स्थल-स्थल पर 'कवित्त' छन्द आया है । उसमें वर्णिक और मात्रिक दोनों प्रकार के कवित्त छन्द का समाहार है । आगे 'पद्धरी' छन्द द्रष्टव्य है । पद्धरी
इस छन्द की योजना 'भद्रबाहु चरित्र', 'लब्धि विधान व्रतकथा', 'पार्श्वपुराण', 'चेतन कर्म चरित्र' आदि कृतियों में हुई है; किन्तु इसकी बहुलता मिलती है 'पार्श्वपुराण' में । उसमें एक स्थल पर एक संग ३८ छन्द सँजो दिये गये हैं । प्रसंगानुकूल कवि के अभीष्ट भाव इस छन्द में भली प्रकार मुखरित हुए हैं ।"
कौन के कारण जाऊँ घरे सम्पति लेहु बटोरि सबै प्यारी प्रिया हित शूर सुनो