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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
'चेत मन भाई रे ॥ ए देशी ॥', 'दान सुपात्रन दीजिए । ए देशी ॥', 'बनमाली के बाग चंपा मौलि रह यौ री ।। ए देशी ॥', 'रे जीया तो बिन घड़ी रे छ मास ॥ ए देशी ॥', 'कपूर हुवै अति ऊजलो रे मिरिया सेती रंग ॥ ए देशी ॥', 'सुमरि पलपल मोहि श्री जिन सुमरि पलपल मोहि' 'संसार सासरियो भाई दोहिलो', 'मनमोहन मदन कुमार जी', 'गज गामिनी' ३ 'तपस्या निरफल जाइ निदाने', 'वदे मेघकुमार', 'जिन दीयौ तेहि पाइयो', 'निदान बल पूरब बैर न टरै', 'तीर्थंकर महिमा अति बनी हो', "यह संसार असार मेरे लाल', 'शिरयाने की', 'घोरी की', 'जयमाल की', 'उरा
१. नाक कहे जग हूं बड़ो, बात सुनो सब कोई रे । नाक रहे पत लोक में, नाक गये पत खोई रे ॥नाक०॥
-पंचेन्द्रिय संवाद, पद्य १७-१८ से २७, पृष्ठ २४०-४१ । २. सीले सीता अगनि नीर होइ, सिंघासन पर धार । जै जै कार कियो देव, अचरज जग में जस अधिकार ॥
भामिनि सुमरि............ ।
-श्रोणिक चरित, पद्य ४७७.७८, पृष्ठ २१-२२ । ३. भूपति रानी चेलना वर कामिनि हरष परस परभाय । रंगे महिला में रहे वर कामिनि सुष में दिवस विहाय ॥
चाल गज गामिनी............ ।
-वही, पद्य ६००, पृष्ठ ४१ । १. बोध भने नृपति सुनी जी, असी के बहकाइ। भलो धरम निज छोड़ि के जी, अन्य धरम ग्रह्यो आइ ।।
हो भूपति बहकै क्यों अधिकाइ।
-वही, पद्य ७६६, पृष्ठ ५५ । ५. किम दुर्बल चिंता उर भासत सुनि नहीं ज्वाव करै। बहु हठ भूप कियो तब बोली नाथ कह्यौ न परै ।।
निदान बल पूरब बैर न टरै ।।
-वही, पद्य १०३६, पृष्ठ ७७ । ६. वही, पद्य १६१२, पृष्ठ १०७.८ ।। ७. झूनागढ़ ते तेजिन आई, दूलह खेंचि बुलाई सुनौ जू। पांय पैजनी जीन जरकसी, रेसम बाग लगाई सुनौ जू ॥
-नेमिचन्द्रिका, पृष्ठ ११ ।