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भाषा-शैली
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इसी प्रकारमाया मिथ्या अग्र शौच मन भाई रे,
तीनों सल्य निवार, चेत मन भाई रे, क्रोध मान माया तजो मन भाई रे,
लोभ सबै परित्याग, चेत मन भाई रे ।' यहाँ निषेध-शैली में माया, मिथ्या, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि के परित्याग का संदेश दिया गया है और साथ ही चेतन को जागरण की भूमि पर उतरने को बोधित भी किया गया है। इस स्थल पर निषेध और प्रबोधन, दोनों शैलियाँ एकाकार हो गयी हैं।
प्रबोधन शैली
निषेध-शैली से मिलता-जुलता रूप प्रबोधन-शैली का है। अन्तर केवल इतना है कि निषेध में जहां त्याज्य का भाव प्रधान रहता है, वहाँ प्रबोधन में त्याज्य और ग्राह्य दोनों का। इस शैली में प्रबोध्य के प्रति प्रबोधक के हृदय की कोमलता एवं उदात्तता की भावना की झलक मिलती है। इसका सर्वाधिक प्रयोग 'शत अष्टोत्तरी' काव्य में हुआ है।
एक उदाहरण देखियेकहाँ कहाँ कौन संग लागे ही फिरत लाल,
___ आवो क्यों न आज तुम ज्ञान के महल में । नेकहू बिलोकि देखो अन्तर सुदृष्टि सेती,
कैसी कैसी नीक नारि ठाड़ी हैं टहल में ।। एकन तें एक बनी सुंदर सुरूप घनी,
उपमा न जाय गनी बाम की चहल में । ऐसी विधि पाय कहूं भूलि और काज कीज,
__ एतौ कह्यौ मान लीजै वीनती सहल में ॥' १. चेतन कर्म चरित्र, पद्य २३४, पृष्ठ ७८ । ... .शत अष्टोत्तरी, पद्य २७, पृष्ठ १५ ।