________________
३१०
चाल
जैन कवियों के ब्रजभाषा - प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
हमारे अधिकांश काव्यों में चौपाई दोहा के अतिरिक्त 'चाल' और 'ढाल' का बहुत प्रयोग हुआ है । 'चाल' छन्द से असम्पृक्त बहुत थोड़े प्रबन्धकाव्य हैं । 'चाल' अधिकतर कवियों का प्रिय छन्द रहा प्रतीत होता है और उसका विधान सम्भवतः कथा को द्रुत गति देने के लिए हुआ है । '
२
कतिपय प्रबन्धकाव्यों में 'चाल' का नाम भी दिया गया है, इससे 'चाल' के अनेक प्रकारों का संकेत प्राप्त होता है ।
'चाल' का प्रयोग 'जीवंधर चरित', 'यशोधर चरित', 'पार्श्वपुराण', 'नेमिचन्द्रिका', 'सीता चरित', 'श्र ेणिक चरित', 'शीलकथा', 'भद्रबाहु चरित्र', 'लब्धि विधान व्रत कथा', 'वरांग चरित' प्रभृति रचनाओं में अधिकांश स्थलों पर दृष्टिगोचर होता है ।
ढाल
'ढाल' शब्द ब्रजभाषा में 'ढार' कहलाता है । ' 'अरे ढार से गा !' में ढारढाल की लयात्मकता की ध्वनि गूंज रही है । वस्तुतः गेयता ढाल की पहली विशेषता है ।
'ढाल' का आरम्भ कब से हुआ ? कुल 'ढाल' कितने प्रकार की हैं ? समस्त ' ढाल' राग-रागिनियों पर ही आधारित हैं या उनमें से कुछ रागरहित हैं ? ढाल के प्रयोग से काव्य को किस सीमा तक उत्कर्ष मिला है,
१. जाने चीर दक्खिनी फारे। गज मोतिन हार विदारे ॥ अरु देही नखन विदारी । ऐसी जो भई
वह नारी ॥
- शीलकथा, पृष्ठ ५० ।
२. पार्श्वपुराण, पृष्ठ ११५ ।
१. आसकरण कृत 'नेमिचन्द्रिका' में 'ढाल' के स्थान पर 'ढार' का प्रयोग हुआ है, जैसे ढार घोरी की, ढार उराहने की, ढार विधारे की, ढार बारहमासे की, ढार अनबोलने की ।