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भाषा-शैली
के द्वारा कविता लोक-सामान्य भावभूमि पर प्रतिष्ठित होती है और व्यापक प्रभाव उत्पन्न करती है । छन्द, अलंकार, बिम्ब, प्रतीक आदि के सुन्दर विधान से शैली को उत्कर्ष प्राप्त होता है ।
आलोच्य काव्य और भाषा-शैली
आलोच्य प्रबन्धकाव्यों की भाषा-शैली के सन्दर्भ में सामान्यतः उनकी भाषा, शब्द-ध्वनि, शब्द-स्रोत, शब्द-योजना, ध्वनिमूलकता, गुण, शब्दशक्तियाँ, समास-रहित पदावली, समासयुक्त पदावली, भावानुकूल भाषा के विविध रूप, अलंकार-छन्द-योजना एवं शैलियाँ विचारणीय हैं । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत शीर्षकों के अन्तर्गत मौलिक प्रबन्धकाव्यों के अलावा अनूदित प्रबन्धकाव्य भी हमारे अध्ययन के विषय रहे है।
भाषा
हमारे प्रबन्धकाव्य प्रधानतः ब्रजभाषा के काव्य हैं। उनमें से अधिकांश में इस भाषा का परिनिष्ठित रूप देखने को मिलता है । उनमें से कुछ में कहीं-कहीं ग्रामीण ब्रजभाषा का प्रभाव भी झलकता है। थोड़े काव्यों में व्रजभाषा अपनी समीपवर्ती भाषा-बोलियों से प्रभावित रही दिखायी देती है।
यह स्मरणीय है कि आलोच्य काल में यह भाषा विस्तृत क्षेत्र के व्यवहार की भाषा ही नहीं थी, प्रत्युत साहित्यिक भाषा भी थी । अतः जो कवि ब्रज-प्रदेश के निवासी थे, उन्होंने तो इस भाषा में काव्य-रचना की ही, किन्तु जो ब्रजभाषा भाषी स्थान के निवासी नहीं थे, वे भी इस भाषा में काव्य-सजन करना गौरव की वस्तु समझते थे। ऐसे कवियों की भाषा में उनकी जन्मभूमि या विहारभूमि के देशज शब्दों, ध्वनियों, क्रियाओं या कारक-चिह्नों का सम्मिलन भी सहजरूप में हो गया है।
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५. डॉ. नन्ददुलारे वाजपेयी : हिन्दी साहित्य, बीसवीं शताब्दी, पृष्ठ ३२ ।