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भाषा-शैली
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बीच-बीच में प्रयुक्त लोकक्तियों एवं कहावतें भी लक्षणा के अन्तर्गत आती हैं, कारण कि वे वाच्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ को निरूपित करती हैं, जैसे :
(क) हंस के वंश को कोई चाल नहीं सिखाता ।' (ख) आयुहीन पुरुष को औषधि नहीं लगती।' (ग) दुर्जन की प्रीति से सुख नहीं होता । (घ) सर्प को दूध पिलाने से अमृत नहीं मिलता। (ङ) थोड़े जल में मछली तड़पती है । (च) नौकर राजा से आगे चले तो राजा नहीं होता। (छ) धतूरा ही मीठा हो तो ईख को कौन चाहे ?" (ज) नाक रहे तें सब रह्यो, नाक गये सब जाय । (झ) गोद के बालक को छोड़कर पेट के बालक की कौन आशा करे। (अ) बिना अपराध नाग नहीं खाता । आदि-आदि । (ख) वे वन बहुत काठ आगि की हम चिनगारी ।
- सीता चरित, पद्य १६६, पृष्ठ १२ । (ग) अमृतमती के बैन कोकिल सुने लजाय, तब बन माँहि जाय कानन ही में रही।
-यशोधर चरित, पद्य २१६ । (घ) परिग्रह पोट उतारि सब, लीनो चारित पंथ ।
-पार्श्व पुराण, पद्य १०२, पृष्ठ ३५ । १. पाश्र्वपुराण, पद्य ६, पृष्ठ ४६ ।
वही, पद्य ७६, पृष्ठ ११ । ३. वही, पद्य ११४, पृष्ठ १४ । १. वही, पद्य ११४, पृष्ठ १४ । ५. शील कथा, पृष्ठ ३६ । ६. पंचेन्द्रिय संवाद, पद्य २८, पृष्ठ १४१ । __ वही, पद्य १६६ ।
वही, पद्य १४, पृष्ठ २४० ।
राजुल पच्चीसी, पद्य ७, पृष्ठ ४ । १०. धर्म परीक्षा, पद्य ३३३, 63 ३१८ ।
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