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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
(घ) अरी जादों पति का बागा ल्यावो हाँ !
अरी सब चुनि चुनि पहिरावो हाँ ! ___ अरी रोरी को मरुट लगायो हाँ !
अरी जननी उर आनन्द बाढ्यो हाँ !' ऊपर लिखे गये अवतरणों में प्रायः समासों का प्रयोग नहीं है । समास भाषा में कसावट लाते हैं, शक्ति भरते हैं; परन्तु यहाँ उनके बिना भी भाषा की शक्ति को चुनौती नहीं दी जा सकती। इन छोटे-छोटे शब्दों में जो अर्थसौष्ठव है, भाव को उद्दीप्त करने की जो शक्ति है, वह साधारण नहीं है। समस्तपदावली
आलोच्य प्रबन्धों में अल्प मात्रा में सामासिक पदावली उपलब्ध होती है। भाषागत प्रवाह में ये समास अनायास ही आ बैठे हैं; उनके प्रयोग के लिए कवि प्रयत्नशील दृष्टिगोचर नहीं होते, यथा :
(क) दलबल देई देवता, मातपिता परिवार ।' (ख) दिपे चामचादर मढ़ी, हाड़ पीजरा देह ।। (ग) रागद्वष दोउ बड़े वजीर । (घ) जन्मजरामरन के भय को निवारिये । (ङ) सुवर्णतार पोह बीच मोति लाल लाइया ।
__ सुहीर पन्न नील पीत पद्म जोति छाइया ॥' (च) अम्बर भूषण डार दिये, सिरमोर उतार के डार दियो है।
१. नेमिनाथ मंगल ।
पार्श्वपुराण, पद्य ७४, पृष्ठ ५६ । ३. वही. पद्य ७८, पृष्ठ ५६ । ४. चेतन कर्म चरित्र, पद्य २६, पृष्ठ ५७ । ५. शत अष्टोत्तरी, पद्य ८, पृष्ठ है।
फूलमाल पच्चीसी। नेमि ब्याह ।