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भाषा-शैली
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कितीक फूल गोद में, घरै चलें प्रमोद में,
लिये जु सून गोद में, प्रसून कौं दिषावती। कितीक नारि हस्त हैं, विकार काम मस्त हैं,
लखें दिसा समस्त हैं, सुनैन कौं चलावती॥ इन शब्दों में संगीत की लय और अद्भुत मिठास है । शब्दों की गति में उचित क्रम से विराम भी लुभावना है। 'कितीक बाल डाल तें, झुमात गैल चालतें, गिरें प्रसून हालतें', 'कितीक वाम चालती, सुकंठ माल मालती, लगें समीर हालती', 'कितीक नारि हस्त हैं, विकार काम मस्त हैं, लखें दिसा समस्त हैं' में कोमल शब्दों के सामंजस्य की झड़ी भावोत्कर्ष की जननी है। ऐसे ही शब्द चित्रभाषा को आविर्भूत कर हमारे हृदय की कोमल वृत्तियों को जगाते हैं। यह सम्पूर्ण चित्र प्रसाद गुण से सम्पुटित है, जिसमें माधुर्य का भी अभाव नहीं है ।
प्रसाद गुण के अतिरिक्त माधुर्य गुण भी काव्यात्मक सौन्दर्य को बढ़ाने वाला गुण है। आगे उसी की योजना देखिए ।
माधुर्य
माधुर्य-गुण-समन्वित पदावली का प्रयोग श्रृंगार, शान्त, भक्ति एवं वात्सल्य रसात्मक स्थलों पर अधिक हुआ है और ऐसे स्थल इन प्रबन्धों में अनेक हैं। ये स्थल वस्तुतः सरस, मधुर और भावात्मक हैं, साथ ही कोमल वर्णों से युक्त । नीचे दिये गये अवतरण में माधुर्य गुण का कितना विनिवेश है, देखिए :
कंचनमय झारी रतननि जारी, क्षीर समुद जल ले भरियं । शीतल हिम कारं चचित सारं, ढारत अनुपम धार त्रयं ।। पूजत सुर राजं हरष समाजं, जिनवर चरण कमल जुगं ।
जग दुख निवारं सब सुख कारं, दायक सुर सिव पद परं ॥ १. जीवंधर चरित (नथमल बिलाला), पद्य २६१, पृष्ठ ८१ । २, वर्द्धमान पुराण, पद्य १६६, पृष्ठ १६६ ।