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भाषा-शैली
श्रीषंड कुकुम कपूर सुगंध मिलि पूजे श्री जिनराइ | संसार भ्रमन आतप नासन को कारण नृप मन लाइ ॥ || श्री अरहंत महिमा अति बनी हो || तंदुल उजल अषंड सुगंध सुभ अक्षत पूज कराइ । अक्षय पद प्रापत के कारण भूपत जी पूजै भाइ ॥ || श्री अरहंत महिमा अति बनी हो ।'
यह भक्ति रस का संगीत प्रधान चित्र है, जिसमें कोमल, सानुनासिक एवं अनुप्रासयुक्त वर्णों का सहज प्रयोग हुआ है । माधुर्य गुण का उन्मेष ऐसे स्थलों पर देखते ही बनता है ।
ओज गुण
आलोच्य ग्रन्थों में ओज गुण की स्थिति प्रायः वीर, बीभत्स, भयानक और रौद्र रसात्मक स्थलों पर ही सर्वाधिक मिलती है । ऐसे स्थलों पर कर्कश ध्वनि वाले वर्ण-संघटन और संयुक्ताक्षरों का अधिक प्रयोग दिखायी देता है । एक उदाहरण लीजिए :
और सिंघ पन्नग विकराल | करें सबद कोप्यो ज्यों काल || आयो पन्नग फण करि दंड । जीभ चपल क्रोधी परचंड ॥
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यहाँ भयानक रस की अभिव्यक्ति है, जिसमें ओज गुण का ऊर्जस्वित
लिए 'करें सबद
प्रवाह है । सिंहों की दहाड़ और पन्नगों की फुफकार के कोप्यो ज्यों काल' का प्रयोग भय की पूरी ध्वनि उत्पन्न करता है । दूसरी पंक्ति में 'ड' परुष वर्ण के अलावा कर्कश ध्वनि उत्पन्न करने वाले अक्षर नहीं रखे गये हैं, फिर भी दंड, परचंड, फण के मध्य अन्य शब्द ओज की सृष्टि में सहायक हुए हैं । इसी गुण का अन्य उदाहरण :
१. श्रेणिक चरित, पद्य १२१२-१३, पृष्ठ ८३ । २. सीता चरित, पृष्ठ ५३ ।