________________
भाषा-शैली
२६६
इन्हीं कृतियों में अपवादस्वरूप कहीं-कहीं 'ण' का 'न' भी उपलब्ध होता है, जैसे :
लक्ष्मण लछिमन
खरदूषण परदूषन 'ड' के स्थान पर 'र' भी कुछ प्रबन्धों में काफी मिलता है, जैसे :
पछाड़ो पछारौ
थोड़ थोर पड़ो पर्यो
करोड़ करोर भीड़ भीर
तोड़िके तोरिके इसी प्रकार कतिपय रचनाओं में 'क्ष' के स्थान पर 'छ' विशेष रूप से व्यवहृत हुआ है, जैसे : पक्षी पंछी ।
क्षण छिन लक्षण लच्छन
क्षति छति क्षोभ छोभ
क्षीण छीन प्रत्यक्ष परतच्छ
लक्ष्मी लछमी
अधिकतर आलोच्य कवियों ने प्रायः संयुक्त वर्णों के सरलीकरण का प्रयास किया है, जैसे:
श्वेत
सेत
दुठ
यत्न
जतन
थिर
रतन
प्रेम
पेम
दुष्ट स्थिर स्नेह ग्रीष्म मुक्ति विकल्प स्तुति . स्वरूप
सनेह ग्रीषम मुकति विकलप
मग्न
मगन
धर्म
धरम
प्रश्वी
पिरथी
थुति ..
आत्म
आतम
सरूप