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रस-योजना
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चढ़त सब वीर मनधीर असवार ह, देखि अरिदलन को मान भंज। पेखि जयवंत जिनचंद सबही कहें, आज पर दलनि को सही गंजै ॥ अतिहि आनन्द भर वीर उमगंत सब, आज हम भिड़न को दाव पायो। युद्ध ऐसो विकट देखि अरि थरहरें, होय हम नाम दिन दिन सवायो॥
राजा चेतन के सैनिकों का उत्साह निशित है । चेतन पक्ष के सेनानी आश्रय और उनका अरिदल आलम्बन है। शत्रु पक्ष की तैयारी और अरिदल-दर्प-दलन की कामना आदि उद्दीपन हैं । अपने-अपने वाहनों पर सवार होना, जिनेश्वर की जय-जयकार करना आदि अनुभाव हैं । धैर्य, गर्व, हर्ष, औत्सुक्य आदि संचारी हैं । उत्साह तो स्थायी भाव है ही, जिससे वीर रस सुन्दर रूप में व्यंजित हुआ है । _ 'चेतन कर्म चरित्र' के अतिरिक्त 'सीताचरित', 'श्रेणिक चरित,३ नेमीश्वर रास, आदि काव्यों के कतिपय स्थलों पर वीर रस का उन्मुक्त प्रवाह दिखायी देता है। उनमें वीरों का धैर्य, साहस, गर्व और उत्साह विविध पक्षों से देखा जा सकता है। १. चेतन कर्म चरित्र, पद्य १०३-१०४, पृष्ठ ६५ । २. (क) सीता चरित, पद्य ११७७ से १२८३, पृष्ठ ६६ ।
(ख) वही, पद्य १४२७ से १४६०, पृष्ठ ७७ से ८२ । श्रेणिक चरित, पद्य ८४४, पृष्ठ ५८ । रण भेरी बाजी तहां, दोउ सेना सनमुष आय तौ। आपस में झूझड़ लगी, चतुरंगनि सेना सनमुख जाय तो।।
रास भणों श्री नेमि को ।। गज सेती गज आ भिड्या, घुड़ला स्यों घुड़ला की मार तो। रथ सेती रथ ही लड़े, पैदल सेती पैदल सार तो ॥रास०॥ चीत्कार रथ अति करै, दंती गरजे मेघ समान तो। घोड़ा हीसे अति घणा, चमक बीज खड़ग समान तौ ॥रास०॥ संष को नाद सुण्यौं जहाँ, दसों दिस थिरराय तो।। रण करवा सनमुष भया, आपस में जुड़िया अधिकाय तो॥रास०॥
-नेमीश्वर रास, पद्य ८४२, ४४, ४८, ५२, पृष्ठ ४६-५० ।