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२६० जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
और उसके पश्चात् शृंगार (विप्रलंभ) और वीर को। प्रबन्धकाव्यों में अन्तरंग सौन्दर्य की सृष्टि एवं उसकी विस्तृत भूमि पर पात्र द्वारा भाव की अभिव्यंजना के लिए अन्य रसों की योजना भी उसके उत्कर्ष में सहायक होती है, इस दृष्टि से हमारे काव्यों में अन्य रसों का भी समुचित निर्वाह हुआ है। उनमें प्राय: परम्परागत विभावों को अपनाया गया है। यदि उनमें नये प्रयोगों का अन्वेषण किया जा सकता है तो शान्त रस के स्तरों में ही।