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रस-योजना
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अशोक वाटिका में शोकमग्न बैठी हुई सीता और उसी समय हनुमान द्वारा राम की मुंदरी डाले जाने का प्रसंग है । इसमें रस के सम्पूर्ण अवयव सन्निहित हैं । सीता आश्रय है और राम की मुंदरी आलम्बन । वाटिका की एकान्तता, मुंदरी को डालकर हनुमान का छिप जाना और केवल मुंदरी ही मंदरी दिखायी देना उद्दीपन विभाव हैं । अश्रु और उत्कंठा अनुभाव तथा चिन्ता, आवेग, भ्रान्ति, औत्सुक्य प्रभृति संचारी भाव हैं।
'पार्श्वपुराण' में थोड़े से स्थलों पर अद्भुत रस का सम्यक् निर्वाह हुआ है। इन्द्र द्वारा ताण्डव नृत्य का एक सजीव चित्र देखिए, जिसमें अद्भुत रस की मर्मस्पर्शी अभिव्यंजना है :
अद्भुत तांडव रस तिहिं बार । दरसाव जन अचरज कार ।। सहज भजा हरि कीनी तबै । भूषन भूषित सोहे सबै ।। धारत चरन चपल अति चलै । पहुमी काँपै गिरिवर हलै ।'
'नमीश्वर रास' का वह स्थल, जिसमें देवकी द्वारा कृष्ण-मिलन के अवसर पर उसके स्तन से बहता हुआ दूध आसमान तक चला गया है.' विस्मय भाव का चलचित्र-सा प्रस्तुत करता है । इसी तरह जब पद्मनाम द्रौपदी को कोमलतापूर्वक जगाता है, तभी वह वही स्वप्न देखती है । अलस निद्रा में द्रौपदी अपना चीर उठाकर झांकती है। उसे लगता है कि उसने स्वप्न देखा है, अतः वह अपने मुख को चीर से फिर ढक लेती है। उसे सत्यासत्य का पता नहीं चलता। उसी क्षण द्रौपदी जगती है। चीर को उठाकर देखने पर उसे साक्षात् वही दिखायी देता है । वह विस्मय से भर कर स्तम्भित रह जाती है, उसके हृदय में विस्मय भाव बराबर बना रहता है।' १. पार्श्वपुराण, पद्य ११७-११८, पृष्ठ १०५ । २. नेमीश्वर रास, पद्य १५४, पृष्ठ १० ।
ततक्षिण जागी द्रौपदी, नैना देष चीर उघारि तो। राजा बैठ्यौ देखियो, द्रौपदी चकित भई तिहि बार तो॥ ॥रास भणौं श्री नेमि को।
क्रमशः