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रस-योजना
कर्म चरित्र', ' ' नेमीश्वर - रास " " सूआ बत्तीसी आदि शान्त रसावसित प्रबन्धकाव्य हैं । यह नहीं कहा जा सकता कि इन काव्यों में अंगी रस शान्त है । उदाहरण के लिए 'चेतनकर्म चरित्र' में अंगीरस वीर है, किन्तु वीर रस की यह क्रीड़ा शान्त रस के ही क्रोड़ में हुई है । इतना अवश्य है कि इन प्रबन्धों में स्थान-स्थान पर शान्त रस के अनेक चित्र है ।"
१. अविचल धाम बसे शिव भूप । अष्टगुणातम सिद्ध स्वरूप || परमित परदेश | किंचित ऊनों थित विनभेश ॥ निरंजन
चरम देह
नाम | काल अनंतहि ध्रुव विश्राम ॥
पुरुषाकार भव कदाच न कबहू होय । सुख अनंत बिलसे नित सोय ॥ - चेतन कर्म चरित्र, पद्य ८७, पृष्ठ ८३ ॥
नेमीश्वर रास, पद्य १२६१ से १२६८, पृष्ठ ७४ ।
२.
३. ध्यावत आप मांहि जगदीश | दुहुँ पद एक विराजत ईश ॥ विधि सुअटा ध्यावत ध्यान । दिन दिन प्रगटत सुभ कल्यान ॥ अनुक्रमशिष पद जिय को भयो । सुख अनंत विलसत नित नयो || सतसंगति सबको सुख देय । जो कछु हिय में ज्ञान धरेय ॥ - सूआ बत्तीसी, पद्य ३०-३१, पृष्ठ २७० । ४. डॉ० सियाराम तिवारी : हिन्दी के मध्यकालीन खण्डकाव्य, पृ० ३६८ ।
५.
भांवर अन्त न पाई ॥
ए नेह सबै दुषदाई | भव संसार भ्रम्यो अति जीव । नाना विध नेह सपना सम ए सुष जाणों । इनसौं जो नाहि ते रुले चतुर्गत माही । तिन कौन कहै सुष सुत मात पिता परिवार । भगनी
विषयादिक ते नहिं चूके । तातै गयो काल अतीत अनाद | पायौ दुष धरि परमाद ॥ बल रूप विद्या मद कीनौ । कुल प्रभुता रस भीनौ ॥ जद लाभ तथौ मद आन्यो । ताथे सुष अपनो तिसना कर नहिं पूरण थाय । मरि मरि करि बहु यह जीवन सांझ प्रकास | बिनसें ततषिन
मान्यौ ॥
काय ॥
मास ॥
२२६
सदीव ||
अघाणों ॥
पाही ॥
बंधव बहु नार ॥ नरकादिक
क्रमशः