________________
२३८
जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
भावों एवं कार्य-व्यापारों में गुम्फित उसकी वियोगात्मक स्थिति रस की पूर्ण दशा को पहुँचकर सहृदयों को रोमांचित करती है ।
'नेमिनाथ चरित', 'नेमिराजुल बारहमास संवाद', 'नेमिचन्द्रिका (आसकरण), 'नेमिचन्द्रिका' (मनरंगलाल), 'नेमीश्वर रास" प्रभृति काव्यों में राजुल का विरह-वर्णन अत्यन्त भावमय और हृदयद्रावक है । एक राजकुमारिका पाणिग्रहण के समय अपने प्रियतम के पाणिग्रहण से वंचित रह जाये, उसका प्रियतम तत्काल पर्वत-प्रदेश में तपस्या के लिए चला जाये, इससे अधिक भाग्य की विडम्बना और क्या हो सकती है ? ऐसे विचित्र अवसर पर ऐसी कौन नारी है, जिसका हृदय नाना भावों की क्रीड़ास्थली न बने ? कवि आसकरण कृत 'नेमिचन्द्रिका' में राजुल की विरह-वेदना देखने योग्य है :
ए कोई पठवहु चतुर सुजान, कुमर मुरकाइये हो । ए मैं बिनती करौं कर जोरि, यहाँ उन्हें लाइये हो ।
जो होइ वियोग तिहारो, निरफल व जनम हमारो। तातै संजम अब तजिये, संसार तणां सुख भजिये। जल बिन जीव किम मीन, तैसे हं तुम आधीन । तुम भाव दया की कीन्हा, सब जीव छुड़ाइ दीन्हा ।।
-नेमिनाथ चरित, पद्य १०५-१०६ । पिय लागंगो चैत वसंत सुहावनों फूलेंगी बेल सबै बनराई । फूलेंगी कामिनी जाको पिया घर फूलेंगे फूल सबै बनराई ।। खेलहिंगे ब्रज के बन में सबै बाल गोपाल रु कुवर कन्हाई । नेमि पिया उठ आवो घरे तुम काहे को करहौ लोग हंसाई ॥२०॥
-नेमिराजुल बारहमास संवाद, पृष्ठ ४२ । ३. नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ १७, २०, २१, २२ । १. नेमीश्वर रास, पद्य १०४८, पृष्ठ ६१ ।