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चरित्र-योजना
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नारी चरित्र
___ जैन प्रबन्ध कवियों ने भ्रष्ट नारी चरित्रों को प्रायः दो रूपों में चित्रित किया है-(१) कामुक या कुशीलरत अवस्था में और (२) शीलवती स्त्रियों को काम अथवा कुशील की ओर प्रेरित करने वाली अवस्था में ।
प्रथम के अन्तर्गत 'यशोधर चरित' की अमृतमयी तथा 'शीलकथा' की हंसद्वीप की राजरानी और द्वितीय के अन्तर्गत 'शीलकथा' की एक दूती आती है।
अमृतमती ___ अमृतमती अत्यन्त रूपवती नारी होते हुए भी उसके स्वभाव, हावभाव, क्रिया-कलाप एवं उसकी वाणी आदि से उसकी अधमाई प्रतीत होती है । वह कामान्ध, छलना, परपुरुष-रत एवं पापिनी है। वह अपने पति की आँखों में धूल झोंककर कुबड़े-काने घिनौने पुरुष के पास पहुँचती है और थोड़े विलम्ब के कारण उसकी डाट-फटकार ही सहन नहीं करती, अपितु लात-धमूका भी सहन करती हुई उसी के साथ रमण करने की याचना करती है।
१. जाहि सरीर सुभा लषि के मनि हेम तबै इह भाँति उपाई। पावक में करिक परवेस उपाव करूं तन कांति अघाई॥
-यशोधर चरित, पद्य २१६, संधि २ । पद मरदन करने लगी, जागिरु वैन उचार ॥ कहाँ रही अब लौं त्रिया, इमि कहि करत प्रहार ।। पहले निंद बात उचारी । गहि चोटी भूमि पछारी ।। फुनि लात धमूका दीन्हीं । परबस सबही सह लीन्हीं। - X X X
X अम्रित देवि कहै इम बैना। रोस तजी मोपरि सूष देना। xxxx तुम ही हो मेरे भरतार । किरपण राय न होय लगार । सो प्रतिपाल चिरंजी रही । मोरे संग................
"॥ -वही, पद्य ३०४ से ३१२, संधि ३ ।