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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
सामने शुद्धात्म तत्त्व की उपलब्धि का विधान रखा है। इस हेतु वे भौतिकता के स्थान पर आध्यात्मिकता अथवा प्रवृत्ति-मार्ग के स्थान पर निवृत्ति-मार्ग के समर्थक रहे हैं। इस प्रकार उन्होंने दार्शनिक भाव-भूमि पर आत्मा और जड़-बन्धन के विश्लेषण को जिस प्रकार सजाया-संवारा है, वह महान् है ।
कतिपय आलोच्य कृतियों में मानवीकृत पात्रों का उल्लेख मिलता है। 'शत अष्टोत्तरी' में चेतन और उसकी दोनों रानियाँ-सुबुद्धि और माया, 'चेतन कर्म चरित्र' में चेतन, कुबुद्धि, सुबुद्धि, मोह, राग, द्वेष, स्वभाव, ध्यान, चारित्र, विवेक, संवेग, ज्ञान, उद्यम, संतोष, धैर्य, उपशम, दर्शन, दान, सत्य, शील, तप, अष्टकर्म आदि, 'पंचेन्द्रिय संवाद' में नाक, कान, आँख, स्पर्श और मन को मानव रूप में चित्रित किया गया है। चेतन
चेतन 'चेतन कर्म चरित्र' और 'शत अष्टोत्तरी' काव्यों का नायक है। वह शरीरगढ़ का राजा है। आरम्भ में वह कुबुद्धि रानी में रत रहने, विषय-शत्रओं को अपना मानने और अष्ट कर्मों द्वारा ठगे जाने के कारण अज्ञानी और अदूरदर्शी है; किन्तु जैसे ही उसके अन्तर्लोचन खुलते हैं, वह वस्तुस्थिति से अवगत हो जाता है। इस स्थल पर उसकी बुद्धिमत्ता झलकती है।
१. डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन, भाग १,
पृष्ठ १४० । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनी, आयु, नाम, गोत्र आदि । कायासी जु नगरी में चिदानंद राज करे,
मायासी जु रानी पै मगन बहु भयौ है । मोहसी है फौजदार क्रोधसौ है कोतवार,
लोभसौ वजीर जहाँ लूटिवेको रह्यौ है ।। उदैको जु काजी माने मानको अदल जान, ।
कामसेवा कनवीस आइ वाको कह्यौ है। ऐसी राजधानी में अपने गुण भूलि गयौ, सुधि जब आई तबै ज्ञान आय गह्यो है ॥२६॥
-शत अष्टोत्तरी, पृष्ठ १४ ।