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पथ भ्रान्त पुरुष
'मधुबिन्दुक चौपई' का 'पथ - भ्रान्त पुरुष' संसारी विषयासक्त जीव का प्रतीक है । वह विषयासक्ति के कारण संसार के महा वन में परिभ्रमण करता है, दुःख - सागर में गोते खाता हुआ भय त्रास आदि नाना कष्टों को सहन करता है ।' वह मधु-बू दपान का लोभी, अज्ञानी और मूढमति है । वह अंधकूप में पड़ा हुआ और अनेक वेदनाएं सहता हुआ भी स्वयं कोई उपाय नहीं सोचता । ' गुरु रूप विद्याधर उसे निकालने के लिए भी कहता है, परन्तु मधु-पान का स्वाद जो उसके मुँह लग गया है । निदान विधाधर भी हारकर लोट जाता है ।
विद्याधर
उपर्युक्त काव्य में ही विद्याधर सुगुरु का प्रतीक है । गुरु का जो दायित्व है, उसका वह पूर्ण निर्वाह करता है । किन्तु नितान्त मूर्ख शिष्य को ज्ञानामृत का दान देना भी व्यर्थ है । विद्याधर अंध- कूप ( भव- कुप ) में पड़े हुए पुरुष को निकालने का भरसक प्रयास करता है, किन्तु मधु-बूंद का लोभी पुरुष अपनी पूर्वावस्था में सुख मानता हुआ अपने उद्धार का अवसर भी खो देता है ।
सुआ
जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
'सूआ बत्तीसी' काव्य में 'सुआ' 'आत्मा' (जीव ) का प्रतीक है । आरम्भ में वह गुरु का आज्ञाकारी शिष्य नहीं है । वह गुरु-शिक्षा के अनुकूल आच
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मधुबिन्दुक चौपई, पद्य १४ से २०, पृष्ठ १३६ ।
वही, पद्य ३६ से ३८, पृष्ठ १३८ ।
वही, पद्य ३६, पृष्ठ १३८ ।