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२१८ जन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
को सर्वोपरि स्थान प्राप्त हुआ है । नारी चरित्रों की सष्टि के पीछे इन कवियों का उद्देश्य प्रायः 'शील' व्रत की महिमा को सिद्ध करना रहा है।
कहने का अभिप्राय यह है कि पुरुष और नारी, दोनों प्रकार के पात्रों के शील-निरूपण में जैन कवियों का अपना दृष्टिकोण रहा है । इन्होंने सभी प्रमुख पात्रों से खूब संघर्ष कराया है, किन्तु अन्त में पहुंचकर अधिकांश चरित्रों को दीक्षा लेकर वैराग्य धारण करने और कठोर तपश्चर्या में रत रहने के लिए जैसे विवश कर दिया है । इसका अर्थ यह हुआ कि इन्होंने मानव के जीवन का अन्तिम लक्ष्य धार्मिक आस्था के साथ जीवन व्यतीत करते हुए तप द्वारा स्वर्ग-मोक्ष प्राप्त करना मान लिया है । मानो इसी रूप में भारतीय संस्कृति मनुष्य को अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण फल प्राप्त करने के लिए संन्यासाश्रम ग्रहण करने का मौन संदेश दे रही है। वास्तव में आध्यात्मिक सुख के लिए भौतिक सुख को तिलांजलि देने का हमारे कवियों का एक लक्ष्य प्रतीत होता है।